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________________ ७२८ उत्तराध्ययनसूत्रे मूलम्-वेण्णओ लोहिए जे उ, भैइए से उ गंधओ। ___ रसओ फांसओ चैव, भैइए संठाणओ वि२ ये ॥२५॥ छाया-वर्णतो लोहितो यस्तु, भाज्यःस तु गन्धतः। रसतः स्पर्शतश्चैव, भाज्यः संस्थानतोऽपिच ॥ २५ ॥ टीका-'वण्णओ लोहिए जे उ' इत्यादि व्याख्या प्राग्वत् । लोहितस्याऽपि प्राग्वविंशतिभङ्गाभवतीति भावः ॥२५॥ वर्णकी अपेक्षा नीला होता है (से-सः) वह (गंधओ-गंधतः) गन्धकी अपेक्षासे (भइए-भाज्यः) भाज्य होता है। इसी तरह वह (रसओ फासओ संठाणओ भइए भवे-रसतः स्पर्शतः संस्थानतश्च भाज्यः भवति) रसकी अपेक्षा, स्पर्शकी अपेक्षा एवं संस्थानकी अपेक्षा भी भाज्य जानना चाहिये। अर्थात् ऐसा कोई नियम नहीं है कि जो पौद्गलिक स्कन्ध नील वर्णवाला हो वह नियमतः नियमित गंध रस स्पर्श एवं संस्थान युक्त हो । अतः इस वर्णके साथ भी गंध रस स्पर्श एवं संस्थान-भाज्य-विकल्प्य कहे गये हैं। इस तरह यह वर्ण भी वीस भंगोंको प्राप्त करता है ॥२४॥ ___अन्वयार्थ (जे-यः) जो पौद्गलिक स्कन्ध (वण्णओ-वर्णतः) वर्णकी अपेक्षा (लोहिए-लोहितः) लोहित लाल होता है (से-सः) वह (गंधओ-गंधतः) गंधकी अपेक्षा (भइए-भाज्यः) भाज्य होता है । इसी नle २ सय छ से-सः ते गंधओ-गंधतः funी अपेक्षाथी भइए-भाज्यः याय छे. या प्रमाणे ते रसओ फासओ संठाणओ भइए भवे-रसतः स्पर्शतः संस्थानतश्च भाज्यः भवति २सनी अपेक्षा २५शनी अपेक्षा अन संस्थाननी અપેક્ષા પણ ભાજ્ય જાણવા જોઈએ. અર્થાત્ એ કેઈ નિયમ નથી કે, જે ૌદગલિક સ્કંધ નીલ રંગવાળો હોય તે નિયમતઃ નિયમિત ગંધ, રસ, સ્પર્શ અને સંસ્થાન યુક્ત હોય આથી આ વર્ણની સાથે પણ ગધ, રસ, સ્પર્શ અને સંસ્થાન ભાજ્ય-વિક બતાવાયેલ છે. આ પ્રમાણે આ વર્ષે પણ વીસ ભંગને પ્રાપ્ત કરે છે. ૨૪ अन्वयार्थ-जे-यः २ पौड्गतिः २४५ वण्णओ-वर्णतः पानी अपेक्षा लोहिए-लोहितः साहित- डाय छे से-सः ते गंधओ-गंधतः धनी अपेक्षा भडए-भाज्यः सापडाय छ, २मा री ते रसओ फासओ संठाणओ भइए-रसतः स्पर्शसः संस्थानतः भाज्यः २सनी अपेक्षा, २५शनी अपेक्षा ५ सय नपा उत्तराध्ययन सूत्र:४
SR No.006372
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size55 MB
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