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________________ કર૮ उत्तराध्ययनसूत्रे तथा-माया, लोभश्च प्रतनुक:-स्वल्पो यस्येति शेषः, अतएव-प्रशान्तचित्तः= प्रशान्तं-प्रकर्षेणोपशमयुक्तं, चित्तं यस्य स तथा, दान्तात्मा-दान्तः-अशुभयोगपरिवर्जनेन वशीकृतः आत्मा येन स तथा, योगवान् , उपधनवान् , इति पदद्वयमितः पूर्व सप्तविंशतितमगाथायां व्याख्यातम् । अस्या अग्रिमगाथया सह सम्बन्धः२९॥ ___'तहा पयणुवाई य' इत्यादि । तथा-प्रतनुवादी-स्वल्पभाषी, च-पुनः, उपशान्तः उपशमयुक्तः, तथाजितेन्द्रियः इन्द्रियनिग्रही, एतद्योगसमायुक्तः, पद्मलेश्यांतु परिणमिति-पद्मलेश्यारूपेण स्वात्मानं परिणमयतीत्यर्थः ॥ ३० ॥ अब पद्मलेश्या के लक्षण कहते हैं--पयणुकोहमाणे' इत्यादि । अन्वयार्थ--(पयणुकोहमाणे मायालोभेय पयणुए-प्रतनुक्रोधमानः मायालोमश्च प्रतनुक:) क्रोध, मान कषाय की अल्पता होनी, माया तथा लोभकषाय की अल्पता होनी ( पसंतचित्ते दंतप्पा-प्रशान्तचित्तः दान्तात्मा ) शान्त चित्त होना अशुभयोग का परित्याग कर शुभयोग में प्रवृत्त होना ( योगवं-योगवान् ) मन वचन काया के योगों को सदा पवित्र रखना तथा ( उवहाणव-उपधानवान् ) तीव्रतपश्चर्या करना ॥२९॥ तथा-'तहा पयणुवाई' इत्यादि । अन्वयार्थ--(पयणुवाइ-प्रतनुवादी) थोड़ा और हितकर बोलना (उपसंते-उपशान्तः) उपशमपरिणाम युक्त होना (जिइंदिए-जितेन्द्रियः) अपनी इन्द्रियों का वश में रखना ( एयजोगसगाउत्तो पद्मलेसं तु परिणमे-एतयोगसमायुक्तःपद्मलेश्यां तु परिणमति ) इन सब बातों से युक्त प्राणी पद्मलेश्या वाला होता है ॥ ३० ॥ जय पोश्यानi ] ४९ छ—“पयणुकोहमाणे " त्या ! अन्ययार्थ-पयणुकोहमाणे मायालोभे य पयणुए-प्रतनुक्रोधमानः मायालोभश्च. प्रतनुकः अध, मान, पायनी म६५ता थवी भाया तथा सास अपायनी मादयता थवी, पसंतचित्ते दंतप्पा-प्रशान्तचित्तः दान्तात्मा शन्त वित्तवाणा मन, शुभयोगनी परित्या परीने शुभ योगमा प्रवृत्त थषु, योगवंयोगवाम् भन, क्यन, याना योगान सहा पवित्र राभा तथा उबहाणवंउपधामवान् ती तपश्चर्या ४२वी ॥२८॥ तथा-" तहा पयणुवाइ" त्या ! ___ मन्वयार्थ–पयणुवाइ-प्रतनुवादी थाई मने हित४२ मासपु, उक्संतेउपशान्तः पशम परिणामयुत थ, जिइदिए-जितेन्द्रियः पातानी छन्द्रयान पशम २४वी, एयजोगसमाउत्तो पद्मलेसं तु परिणमे-एतद्योग समायुक्तः पद्मलेश्यां तु परिणमति २॥ सजा वाताथा युत प्राणी पाटेश्यावा हाय छे. ॥30॥ उत्तराध्ययन सूत्र:४
SR No.006372
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size55 MB
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