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________________ उत्तराध्ययनसूत्रे तेजोलेश्यारसमाहमूलम्.-जह परिणयंबगरसो, पक्ककविट्ठस्स वावि जारिसओ। एत्तो वि अणंतगुणो, रेसो उ तेऊय नायवो ॥१३॥ छाया--यथा परिणताम्रकरसः, पक्वकपित्थस्य वापि यादृशकः। __ अत्तोऽप्यनन्तगुणो, रसस्तु तेजसो ज्ञातव्यः॥ १३॥ टोका--'जह परिणयंवगरसो' इत्यादि-- यथा-यादृशः, परिणताम्रकरसः परिणतं-परिपक्वं यद् आम्रकम्-आम्रफलं, तद्रसो भवति, यादृशकः यादृशो वाऽपि पक्वकपित्थस्य रसो भवति, अतोऽप्यनन्तगुणो रसस्तु तेजसः तेजोलेश्यायाः, ज्ञातव्यः। किंचिदम्लाकिंचिन्मधुरश्च रसस्तेजोलेश्याया भवतीति भावः ॥ १३ ॥ रसाकापोत्या ज्ञातव्यः) इन सब के रस से भी अनंतगुणा खट्टा रस कापोती लेश्याका होता है ॥ १२ ॥ । अब तेजोलेश्या का रस कहते हैं-'जहपरिणयं बग०' इत्यादि । अन्वयार्थ (जहा-यथा ) जैसे (परिणयं बगरसो-परिणताम्रकरसः) पके हुए आमका रस होता है। अथवा ( जारिसओ पक्ककविट्ठस्स होता रसो-यादृशकापककपित्थस्य रसः) जैसे पके हुए कैंथ-कविठ का रस है एत्तोवि अणंतगुणो रसो तेऊय नायव्यो-अतोऽपि अनंतगुणः रसः तेजस ज्ञातव्यः) इनके रसों से भी अनन्तगुणा रस तेजो लेश्या का होता है ऐसा जनना चाहिये । कुछ अम्ल खट्टा कुछ मधुर रस तेजोलेश्या का होता है यह भाव इस गाथा का है ॥१३॥ अतोऽपि अनंतगुणःरसः कापोत्या ज्ञातव्यः २५॥ साथी ५५ मनता। माट। २स २॥ पातोश्यान डाय छे. ॥ १२ ॥ वेतनवेश्यान। २सनु वर्णन छ -" जहपरिणयंबग०" त्याह! अन्वयार्थ-जहा-यथारेम परिणयंबगरसो-परिणताम्रकरसः पाशी राम स डाय छेजारिसओ पककविद्रस्स रसो-यादृशकः पक्वकपित्थस्य रसः यो पास। ४वी ने। २स डाय छ, एत्तो वि अणंतगुणो रसो तेऊय नायव्वो-अतोऽपि अनंतगुणः रसः तेजसः ज्ञातव्यः तेना साथी मन त । २स ते वेश्यानडाय એવું જાણવું જોઈએ. કાંઈક ખાટો અને કાંઈક મીઠે એવો મધુર રસ તે જેसश्यानी जय . माथी मा१ मा माथाना छे. ॥ १३ ॥ उत्तराध्ययन सूत्र :४
SR No.006372
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size55 MB
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