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________________ ५९८ उत्तराध्ययनसूत्रे "सायावेयणिज्जस्स पुच्छा....जहन्नेणं बारसमुहुत्ता" तथा " असायावेयणिज्जस्स पुच्छा........जहण्णेणं सागरोवमस्स तिणि सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जभागेणं ऊणा" इति ।। २० ॥ ___ अथ मोहनीयकर्मस्थितिमाहमूलम्-उदहिसरिसनामाणं, सत्तर कोडिकोडीओ। मोहणिजस्स उक्कोसा, अंतोमुंहुत्तं जहनिया ॥ २१॥ छाया-उदधिसदृशनमानि, सप्तति कोटि कोटीः। ___ मोहनीयस्य उत्कृष्टा, अन्तर्मुहूर्त जघन्यका ॥ २१ ॥ टीका—'उहिसरिसनामाणं' इत्यादि। सप्तति कोटि कोटीः, उदधिसदृशनामानि = सागरोपमाणि मोहनीयस्य उत्कृष्टा स्थितिः, जघन्यका = जघन्यास्थितिस्तु अन्तर्मुहूर्तम् ॥ २१ ॥ अथायुष्कर्मणः स्थितिमाहमूलम् तेत्तीस सागरोवमा, उक्कोसेण वियाहिया । ठिई उ आउकम्मस्स, अंतोमुहुत्तं जहन्निया ॥२२॥ छाया-त्रयस्त्रिंशत्सागरोपमाणि, उत्कर्षेण व्याख्याता । स्थितिस्तु आयुष्कर्मणः, अन्तर्मुहूत जघन्यका ॥ २२ ॥ 'टीका-तेत्तीससागरोवमा इत्यादि। आयुष्कर्मणः स्थितिस्तु उत्कर्षेण त्रयस्त्रिंशत् सागरोपमाणि व्याख्याता । जध न्यका-जघन्या तु अन्तर्मुहूर्त्तमित्यन्वयः ॥ २२ ॥ जघन्यस्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग न्यून , सागरोपम के सात भागों में के तीन भाग परिमित होती है ॥२०॥ अब मोहनीय कर्म की स्थिति कहते हैं-'उदहि' इत्यादि । मोहनीय कर्म की उत्कृष्ट स्थिति सत्तर (७०) कोटी कोटी सागरोपम प्रमाण है। तथा जघन्य स्थिति अन्तमुहूर्त की है ॥ २१ ॥ વેદનીયની જઘન્ય સ્થિતિ પલ્યોપમના અસંખ્યાતમા ભાગ ન્યૂન સાગરોપમના सात मागभाना ३ मा परिभित काय छे. ॥ २० ॥ ३ माडनीय भनी स्थिति ४ छे.-" उदाहि" त्याहि । મેહનીય કર્મની ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ સીત્તર કોટી કોટી સાગરેપમ પ્રમાણ ७. तथा धन्य स्थिति मतमुडूत नी छ. ॥ २१ ॥ उत्तराध्ययन सूत्र :४
SR No.006372
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size55 MB
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