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________________ ४६४ उत्तराध्ययनसूत्रे अवमाशनानां अवमौदरिकतपः समाराधकानां, दमितेन्द्रियाणां चित्तं रागशत्रु ने धर्षयति=न पराजेतुं शक्नोति क इव ! औषधैः पराजितो व्याधिरिव । यथौषधपरा. भूतो व्याधिः शरीरं घर्षयति तद्वित्यर्थः ॥ १२ ॥ विविक्तवसत्यभावे दोषमाह~मूलम्-जहा विरालावसहस्त मूले, न मूसगाणं वसही पसत्था। एमेव इत्थीनिलयस्स मज्झे, न बंभयारिस्स खेमो निवासो॥१३॥ तानाम् ) स्त्री पशु पण्डक आदि से रहित वसति में रहनेरूप अवस्थान से यन्त्रित हुए तथा ( ओमासणाणं-अवमाशनानाम् ) अवमौदर्यादिक तपश्चर्या में निरत ( दमिइंदियाणं-दमितेन्द्रियाणाम् ) इन्द्रियों को दमन करने में तत्पर ऐसे संयमीजनों के (चित्तं-चित्तम् ) अन्तःकरण को (रागसत्तू न धरिसेइ-रागशत्रुः न धर्षयति ) रागरूपी शत्रुकिसी तरह से भी पराजित नहीं कर सकता है । (ओसहेहिं पराइओ वाहिरिव औषधैः पराजितः व्याधिः इव ) जिस प्रकार औषधियों द्वारा नष्ट की गई व्याधि शरीर पर आक्रमण नहीं कर सकती हैं। भावार्थ-जिस प्रकार औषधियों द्वारा नष्ट हुआ रोग शरीर पर किसी भी तरह का अपना प्रभाव नहीं दिखला सकता उसी प्रकार विविक्तशय्यासनवाले तथा औवमौदरि आदि तप करनेवाले एवं इन्द्रियों को अपने वश में रखने वाले साधुओं के चित्त को रागरूपी शत्रु विक्षिस नहीं बना सकता है ॥ १२ ॥ પશ, પંડક આદિથી રહીત વસતીમાં રહેવારૂપ અવસ્થાનથી વંત્રિત થયેલ तथा ओमासणाणं-अवमाशनानाम् अयमोहहि तपश्चर्यामा निरत दमि इंदिया -दमितेन्द्रियाणाम् धन्द्रियानुभन ४२वाभा त५२ मे। संयमी नाना चित्तंचिचम् मत: ४२ने रागसत्तू न धरिसेइ-राग शत्रुः न धर्ष यति ॥३५ शत्र ५ ५२।०१ ४२१ २४ता नथी, ओसहेहिं पराइओ वाहिरिव-औषधैः पराजितः व्याधिः इव २ प्रमाणे औषधिय द्वारा भटामा मावस रोग શરીર ઉપર આક્રમણ કરી શકતું નથી. | ભાવાર્થ –જે રીતે ઔષધીયાથી શરીરમાંના રોગને નષ્ટ કરવામાં આવ્યા પછી તેનો કેઈ પણ પ્રકારને પ્રભાવ દેખાતું નથી. એ જ પ્રમાણે વિવિક્ત શસ્યાસનવાળા તથા અવમૌદારિ આદિ તપ કરવાવાળા અને ઇન્દ્રિયોને પિતાના વશમાં રાખવાવાળા સાધુઓના ચિત્તમાં રાગરૂપી શત્રુ પિતાનું સ્થાન જમાવી શકતા નથી તેવા उत्तराध्ययन सूत्र:४
SR No.006372
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size55 MB
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