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________________ उत्तराध्ययनसूत्रे छाया-ब्राह्मणकुलसम्भूतः, आसीद् विप्रो महायशाः । यायाजी यमयज्ञे, जयघोषेति नामकः ॥१॥ टीका-'माहण०' इत्यादि ब्राह्मणकुलसंभूतो ब्राह्मणवंशे समुत्पन्नः यमयज्ञे यम इव-कृतान्त इव प्राण्युपघातकारितया यमः, स चासौ यज्ञश्चेति, तस्मिन्-तद्विषये यायाजी-मुहुर्मुहु यज्ञकर्ता - मुहुर्मुहुर्द्रव्ययज्ञकर्ता, अत एव - महायशाः = द्रव्ययज्ञकर्तृसमुदाये विस्तृतकीर्तिः विमा-द्रव्ययज्ञादि ब्राह्मणाचारे निरतः जयघोषेति नामको ब्राह्मण आसीत् । 'माहणकुलसंभूओ' इत्युक्त्वाऽपि 'विप्पो' इति पुनः कथनं तस्य मातुरपि ब्राह्मणकुलोद्भूतत्वं सूचयति। मातुरब्रह्मकुलोत्पन्नत्वे सांकर्येण तस्य वेदानधिकारित्वाद् विप्रत्वमेव न स्यात् ।। अन्वयार्थ—(जयघोसित्ति-जयघोष इति) जयघोष नामसे प्रसिद्ध एक व्यक्ति था । यह (माहणकुलसंभूओ-ब्राह्मणकुलसम्भूतः) ब्राह्मण कुलसे उत्पन्न हुआ था। (जायाई जमजन्नम्मि-यायाजी यमयज्ञे) प्राणि वधक होनेसे यमरूप यज्ञको प्रतिदिन करनेवाला था, इसी लिये (महा. जसो-महायशाः) इस द्रव्यरूप यज्ञके करनेवालों में यह विशेष प्रसिद्ध माना जाता था । तथा (विप्पो-विप्रः) द्रव्ययज्ञ आदिरूप ब्राह्मण आचार में यह निरत बना रहता था। "माहणकुलसम्भूओ" ऐसा कह कर भी जो सूत्रकारने "विप्पो" ऐसा पाठ पुनः कहा है उससे यह सूचित होता है कि इसकी माता भी ब्राह्मणकुलकी ही थी । यदि माता ब्राह्मण कुलकी न होती तो उसमें वर्णसंकरता होनेके कारण वेदाध्ययन का अधिकार भी नहीं होता ॥१॥ मन्या-जयघोसित्ति-जयघोष इति न्यधापना नामथी प्रसिद्ध मे व्यठित ती माहणकुलसंभूओ - ब्राह्मणकुलसंभूतः ये प्राममा उत्पन्न च्या ता. जायाई जमजन्नम्मि-यायाजी यमयज्ञे प्राणीमान १५ ४२नार पाथी यभयज्ञ नमन। यज्ञने प्रतिदिन ४२वावा। ता, २४ २४थी महाजसामहायशाः से द्रव्य३५ यज्ञना ४२१वाजासामा मेनी ५ प्रसिद्ध ती. तथा विप्पो-विप्र; द्रव्य३५ प्रामाणु मायामां निरत सनी २७ता उता. "माहणकुलसंभूओ” साम ही ५५ सूत्रारे “ विप्पो' सवा ४ इशथी કહેલ છે એથી એ સૂચિત થાય છે કે, એની માતા પણ બ્રાહ્મણકુળની જ હતી જે તેની માતા બ્રાહ્મણ કુળની ન હેત તે તેનામાં વર્ણસંકરતા હોવાના કારણે વેદાધ્યયનને અધિકાર તેને પ્રાપ્ત થયેલ ન હોત. ૧ | उत्तराध्ययन सूत्र:४
SR No.006372
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size55 MB
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