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________________ १४४ जिहवेन्द्रिय का निरूपण ५२१-५३० १४५ स्पर्शनेन्द्रिय का निरूपण ५३१-५३९ १४६ मन का निरूपण ५४०-५५१ १४७ कामभोग के स्वरूपका निरूपण ५५२-५५४ १४८ विकृति के स्वरूका निरूपण ५५५-५५६ १४९ रागके अपनयन दूर करने के प्रकारका निरूपण ५५७-५५९ १५० विकारोंसे दोषान्तरोंकी उत्पत्ती होने के संभवका कथन५६०-५६२ १५१ रागद्वेषसे ही अनर्थोत्पत्ति होनेका निरूपण ५६३-५६५ १५२ तृष्णाक्षयका वर्णन ५६६-५६९ १५३ मोक्षगतिका निरूपण ५७०-५७२ १५४ अध्ययनका उपसंहार ५७३ १५५ तेतीसवें अध्ययनका प्रारम्भ ५७४ १५६ कर्म प्रकृतिका वर्णन ५७५-५८० १५७ ज्ञानावरण और दर्शनावरणके स्वरूपका निरूपण ५८१-५८२ १५८ वेदनीय और मोहनीयके स्वरूपका निरूपण ५८३-५८४ १५९ दर्शनमोहनीयके तीन भेदका निरूपण ५८५-५८६ १६० आयुष्कर्म और नामकर्मके स्वरूपका वर्णन ५८७-५८८ १६१ गोत्रकर्मके स्वरूपका वर्णन ५८९-५९० १६२ कर्मों के प्रदेशाग्र (परमाणुं)का निरूपण ५९१-५९८ १६३ मोहनीय कर्मके स्थितिका निरूपण ५९८ १६४ नामगोत्रके स्थितिका निरूपण १६५ अध्ययनका उपसंहार ६००-६०१ १६६ चौतीसवें अध्ययनका प्रारंभ और लेश्याओंका निरूपण ६०२-६०४ १६७ लेश्याओंके वर्णद्वारका निरूपण १६८ लेश्याओंके रसद्वारका निरूपण ६१०-६१४ १६९ लेश्याओंके गंधद्वारका निरूपण ६१५-६१६ १७० लेश्याओंके स्पर्शद्वारका निरूपण ६१७-६१९ १७१ लक्षणद्वारका निरूपण ९७२ स्थानद्वारका निरूपण ६३१-६३२ १७३ स्थितिद्वारका निरूपण ६३३-६५४ १७४ गतिद्वारका निरूपण ६५५-६५६ उत्तराध्ययन सूत्र :४
SR No.006372
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size55 MB
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