________________
प्रियदर्शिनी टीका अ. २३ श्रीपार्श्वनाथचरितनिरूपणम
__ ९३७ गोतमः प्राह-- मूलम्-भवतण्हा लँया वुत्ता, भीमा भीमफलोदया।
तमुद्धित्तु जहानायं, विहरामि महामुणी ॥४८॥ छाया--भवतृष्णा लता उक्ता, भीमा भीमकलोदया।
. तामुनृत्य यथान्याय, विहरामि महामुने ! ॥४८॥ टीका--"भवतण्हा' इत्यादि--
हे महामुने ! भवतृष्णा भवे-संसारे या तृष्णा लोभः, सा, लता उत्ता। एषा भवतृष्णारूपा लता भीमा-स्वरूपतो भयप्रदा, तथा-भीमफलोदया-भीमः= दुःखहेतुत्वेन भयङ्करः फलानां क्लिष्टकमणामुदयो-विपाको यस्याः सा तथा, नरकनिगोदादिदुःखहेतुभूता चास्ति । एवंविधां तां लताम् उदृत्य उत्पाटय यथान्यायं शास्त्रोक्तमार्गानुसारेणाहं विहरामि-अप्रतिबद्धविहारितया विचरामि ।४८। तु-केशीमेवं ब्रुवतं तु) केशी श्रमण के इस प्रकार पूछने पर (गोयमो इणममब्बती-गौतमो इदमब्रवीत्) गौतमस्वामी इसप्रकार कहते है ॥४७॥
गौतमस्वामीने क्या कहा सो कहते हैं-'भवतण्हा' इत्यादि।
अन्वयार्थ-(महामुणी-महामुने) हे महामुने! (भवतण्हा लया बुता -भवतृष्णा लता उक्ता)वह लता भव तृष्णा स्वरूप है-अथात् संसार में जो लोभ है वही एक लता है। यह भवतृष्णा रूप लता स्वरूपतः (भीमा भीमफलोदया-भीमा भीमफलोदया) भय को देने वाली है, तथा दुःखों के हेतु होने से भयंकर क्लिष्ट कर्मों का उदयरूप है जिससे ऐसी है। तथा नरकनिगोदादिक दुःखों की हेतुभूत है। (तमुद्धितु-तामुद्धत्य) मैं ने उस लता को उखाड दिया है। इसी लिये (विहरामि-विहरामि) शास्त्राक्तमार्ग के अनुसार मैं अप्रतिबद्ध होकर विहार करता हूं ॥४८॥
शी श्रमाना | Rना ५७वाथी गोयमो इणमब्बवी-गौतमो इदमब्रवीत् ગૌતમસ્વામી આ પ્રમાણે કહે છે કથા
गौतम स्वामी शु४ ते ४ छ-'भवतण्डा" त्या !
अन्वयार्थ --महामुणी-महामुने महामुनि ! भवतण्हा लया वुत्ता-भवतृष्णा लता उक्ता से सतावतृष्णा २१३५ छ. अर्थात-ससारमा होम ते ४ सताछ में भवतृपया३५ सता भरीत तो भीमा भीमफलोदया-भीमा-भीमफलोदया नयने मापनारी छ तथा साना तु३५ पाथी लय ४२ लेश ઉપજાવનાર કર્મના ઉદયરૂપ છે. તથા નરક નિગોદાદિક દુઃખોની હેતુભૂત છે तमद्वित्त-तामद्धत्य में ते ताने मेडी नाभी . मा ४॥२0 शास्रोत भाग अनुसार मप्रतिम २ विहरामि-विहरामि विडार ४३ छु.. ॥४८॥
११८
उत्त२॥ध्ययन सूत्र : 3