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________________ प्रियदर्शिनी टोका अ. १८ श्री जयचक्रवर्तीकथा गात्मकं धर्म श्रुत्वा राजसहस्रैरविन्तः युक्तः सुपरित्यागी राज्यसुतदारादिपरि त्यागशीलः सन् जैनी दीक्षां गृहीत्वाद मम्-इन्द्रियोपशमम् अचरत्=कृतवान् । ततोऽनुत्तरां-सर्वोत्कृष्टां मोक्षाख्यां गतिं प्राप्तः ॥४३ । अथ जयचक्रवर्तिकथा आसीदत्र भरतक्षेत्रे सकलसम्पदगृहे राजगृहे नगरे यशः सुधासमुद्रः समुद्रविजयो नाम नृपः । तस्यासील्लावण्य तारुण्यपरिपूर्णा शीलालङ्कारालङ्कता शालिधान्यगुणावलीनां वप्र (क्षेत्र) भूता वप्रा नाम पट्टमहिषी । सा कदाचित्सुको तथा-'अनिओ' इत्यादि । अन्वयार्थ-नमिनाथ के शासन में (जयनामो-जयनामा) जयनामक ग्यारहवें चक्रवर्तीने (जिणक्खायं-जिनाख्यातम् ) जिनेन्द्र प्रतिपादित श्रुतचारित्ररूप धर्मका श्रवणकर (रायसहस्सेहिं अनिओ-राजसहस्र अन्वितः) हजार राजाओं के साथ (सुपरिचाइ-सुपरित्यागी) राज्य, सुत, दारा आदिका परित्याग करके जिनदीक्षा को अंगीकार किया और ( दमं चरे-दमम् अचरत् ) इन्द्रियों को उपशमित किया। इस से (अणुत्तरं गइम् पत्तो-अनुत्तराम गति प्राप्तः) सर्वोत्कृष्ट गति मोक्ष को प्राप्र हुए। इनकी कथा इस प्रकार है इस भरतक्षेत्र के अन्तर्गत राजगृह नामका नगर था। वहां का वैभव देखकर ऐसा ज्ञात होता था कि मानों सकल संपत्तियों का यह एक घरही है। इसके शासक यशरूपी सुधा का समुद्र समुद्रविजय नामके राजा थे। इनकी वप्रा नामकी पटरानी थी। यह लावण्य तथा-"अनिओ" त्या!ि स-या -मीनाथना शासनमा जयनामो-जयनाम भयनामना 40यारमा यवती जिणक्खायं-जिनाख्यातम् नेन्द्र प्रतिपाहित श्रुत यारित्र ३५ धमनु श्रवधु ४२१ रायसहस्सेहिं अन्निओ-राजसहस्त्रैः अन्वितः M२ सयानी साथै सुपरिचाइ-सुपरित्यागी राय, सत हास, माहिनी परित्याग ४शन - दीक्षाने स४ि२ ४श मने दमं चरे-दमम् अचरत धन्द्रिय ९५२ अनुभवी तेनाथी ते अणुत्तरं गइम् पत्तो-अनुत्तराम गति प्राप्तः सत्कृिष्ट अति थेट मोक्ष प्राप्त यु. તેમની કથા આ પ્રકારની છે આ ભરતક્ષેત્રમાં રાજગૃહ નામનું એક નગર હતું. ત્યાંને વૈભવ જોતાં એવું જણાતું હતું કે, સઘળી સંપત્તિઓનું એ જાણે ઘર જ હોય. ત્યાંના શાસક યશરૂપી સુધાને સમુદ્ર એવા સમુદ્રવિજય નામના રાજા હતા. તેમને વપ્રા નામની પર ણી उत्त२॥ध्ययन सूत्र : 3
SR No.006371
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1051
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size58 MB
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