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________________ प्रियदर्शिनीटीका अ० १३ चित्र-संभूतचरितवर्णनम् टीका-'अहं पि' इत्यादि। हे साधो-हे मुने ! इह-सांसारिक पदार्थानित्यत्वविषये यदेतत्पूर्वोक्तं वाक्यं यथा येन प्रकारेण त्वं मे-मम सोधयसि कथयसि, तथैवाहमपि तत्सर्व जानामि । यदि जानासि तदा कथमासक्तोऽसि ? इति चेच्चित्रमुनिर्बयादत आह-'भोगा इमे' इत्यादि-इमे-शब्दादयो भोगाः सङ्ककरा:=धर्मक्रिया प्रतिबन्धका भवन्ति । हे आर्य ! ये भोगा अस्मादृशैर्गुरुकर्मभिर्दुर्जयाः जेतुमशक्याः भवन्ति । अतोऽहमेतत्परित्यागेऽसमर्थोऽस्मीति ॥ २७॥ इस प्रकार मुनिराजके वचन सुनकर चक्रवर्ती कहते हैं-'अहंपि'इत्यादि। अन्वयार्थ (साहू-साधो) मुनिराज ! (जहा इह तुमं मे साधयसियथा इह त्वं मे साधयसि) जिस तरह आप सांसारिक पदार्थों की अनित्य ताके विषय में मुझे समझा रहे हैं उस तरह ( अहंपि जाणामि-अहमपि जानामि ) मैं भी जानता हूं कि (इमे-इमे) ये (भोगा-भोगाः) शब्दादिक भोग(संगकरा हवंति-सङ्गकरा भवन्ति) धर्मक्रियाके प्रतिबन्धक हैं। परन्तु (अज्जो-आर्य) हे आर्य। (ये भोगाः) जो भोग होते हैं वे ( अम्हासि से हिं-दुज्जया-अस्मादृशैः दुर्जयाः) हमारे जैसोंसे दुर्जय हुआ करते हैं, अतः मैं उनके छोड़ने में असमर्थ हूं। भावार्थ-चक्रवर्तीने इस गाथा द्वारा अपनी वास्तविक परिस्थिति मुनिराजके सामने स्पष्ट कर रख दी है, उससे यह ज्ञात हो जाता है कि वह जैसा कह रहा है कि मैं भी इन भोगोंको धर्मक्रियाके प्रतिबंधक जान रहा हूं-परन्तु चारित्रमोहनीयके उदयमें ये हमारे जैसे जीवों द्वारा આ પ્રકારનાં મુનિરાજનાં વચન સાંભળીને ચક્રવતી કહે છે– "अहपि "-त्याहि.. मन्क्याथ-साहू-साधो मुनिशन! जहा इह तुमं मे साधयसि-यथा इह त्वं मे साधयसि म मा५ सांसारि पहाथीनी मनित्यतान विषयमा भने सभनवी २ छ। मेक शत अहंपि जाणामि-अहमपि जानामि ५ छु है, इमे-इमे ॥ शाहिर भोगा-भोगाः लोग संगकरा हवंति-सङ्गकरा भवन्ति धभडियामा अपराध ४२॥२ छे परंतु अज्जा-आर्य ! माय ! भोगाः २ सोय छे ते अम्हासिसेहिं दुच्चया-अस्माद्रशैः दुस्त्यजा सभा पाथी છોડાવા અશક્ય હોય છે. આથી હું તેને છોડવામાં અસમર્થ છું. ભાવાર્થ-ચકવર્તીએ આ ગાથા દ્વારા પોતાની વાસ્તવિક પરિસ્થીતિ અનિરાજની સામે સ્પષ્ટ કરીને રાખી દીધી. ચક્રવતી એવું કહી રહેલ છે કે, હું આ ભેગેને ધર્મ ક્રિયાના પ્રતિબંધક જાણું છું પરંતુ ચારિત્ર મેહનીયના ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૨
SR No.006370
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages901
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size49 MB
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