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________________ प्रियदर्शिनी टीका. अ० १३ चित्र - संभूतबरिनवर्णतम् एवं वियोग हेतुं ज्ञात्वा चक्रवर्ती पुनः पृच्छति मूलम् - सच्च सोप्पंगडा, कम्मा मऍ पुरा कैडा । ७४९ 'ते अजं परिभुंजामी, किं नुं चित्ते वि" से" तेहा ॥ ९ ॥ छाया - सत्यशौचप्रकटानि कर्माणि मया पुरा कृतानि । तान्यद्य परिभुजे, किं नु चित्रोऽपि तानि तथा ॥ ९ ॥ टीका - सच्च सोय ' इत्यादि - हेमुने ! सत्यशौचप्रकटानि सत्यं मृषाभाषात्यागरूपम्, शौचं - मायारहितमनुष्ठानम्, ताभ्यां प्रकटानि ख्यातानि कर्माणि =पक्रमाच्छुभकर्माणि पुरा=पूर्वभवे मयाकृतानि = उपार्जितानि । तानि कर्माणि अद्य परिभुजे । चक्रवर्तिसुख भावार्थ- हमको इस कथासे यह बात निश्चित हो चुकी है कि संभूतमुनिने चक्रवर्ती होनेका निदान बंध किया था अतः चित्रमुनिका जीव उनको समझा रहे हैं कि मैंने यद्यपि उस समय तुम को बहुत कुछ ऐसा न करने की अभिलाषासे निषिद्ध भी किया था परन्तु तुमने मेरी एक बात भी नहीं मानी। उसीका यह कारण हुआ कि हम तुम दोनों इस भव में वियुक्त हुए हैं ॥ ८ ॥ इस प्रकार वियोगके कारणको जानकर चक्रवर्तीने पुनः पूछासच्च० ' इत्यादि । 6 अन्वयार्थ - हे मुने ! ( मए - मया ) मैंने (पुरा) संभूतकी पर्याय में जो ( सच्च सोयपगडा कम्मा कडा - सत्यशौचप्रकटानि कर्माणि कृतानि) मृषाभाषा त्यागरूप तथा मायाचारीके वर्जन रूपसे प्रसिद्ध शुभ कर्म ભાવાર્થ.આ કથાથી આપણને એ વાત નિશ્ચિત થઈ ગઈ છે કે, સંભૂત મુનિએ ચક્રવતી થવાનું નિયાણુ કરેલ હતું. આથી ચિત્તમુનીના જીવ એને સમજાવે છે કે, મે' એ સમયે તમને આવુ નિયાણું' ન કરવા ખૂમ સમજાવેલ હતા પરંતુ તમાએ મારી એક પણ વાત માનેલ ન હતી. એનું ફળ એ મળ્યું કે આ ભવમાં આપણે બંને એક બીજાથી વિખુટા પડી ગયા. ሀረ આ પ્રમાણે વિચાગનું કારણ જાણી લીધા પછી ચક્રવતીએ ફરીથી પૂછ્યું. 61 सच्च " - धत्याहि ! मन्वयार्थ - डे भुनि ! मए-मया में पुरा-पुरा संभूतनी पर्यायभां सच्चसो- सत्यशौच प्रकटानि भूषालाषानी त्याग भने भायायारीना वन पगडा कम्मा कडा-स ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૨
SR No.006370
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages901
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size49 MB
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