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________________ %3 % 3A प्रियदर्शिनी टी. अ० १२ हरिकेशबलमुनिचरितवर्णनम् टीका-'धम्मे-इत्यादि धर्मोऽहिंसादिरूपो हृदस्तस्यैव कर्मरजोऽपहारकत्वात्, ब्रह्म-बह्मचर्य शान्तितीर्थम् , एतदासेवनेन सकलमलमूलभूतौ रागद्वेषौ समुन्मलितौ भवतः रागद्वेषोन्मूलने तु न पुनमलोत्पत्तिसंभवः । उक्तंच "ब्रह्मचर्येण सत्येन, तपसा संयमेन च । मातगर्षिर्गतः शुद्धिं, न शुद्धिस्तीर्थयात्रया ॥१॥ इति ॥ __स्नान के विषय में जब उन ब्राह्मणों ने जिज्ञासाभाव से प्रश्न किये तो मुनिराज ने उनका उत्तर इस प्रकार दिया 'धम्मे हरए'-इत्यादि । ____ अन्वयार्थ-(धम्मे हरए-धर्मो हृदः) अहिंसा आदिरूप धर्म इदसरोवर है । क्यों कि इसी धर्म से कर्मरूपी धूलि का अपहरण होता है। (बंभे संतितित्थे ब्रह्म शान्तितीर्थम् ) ब्रह्मचर्य शान्तितीर्थ है। कारण कि इसके सेवन करने से समस्त मलों के मूलभूत राग और द्वेष समूल विनिष्ट होते हैं। रागद्वेष के उन्मूलित होने से पुनः मलोत्पत्ति की संभावना नहीं रहती है । कहा भी है-- "ब्रह्मचर्येण सत्येन, तपसा संयमेन च। मातंर्गर्षिर्गतः शुद्धिं, न शुद्धिस्तीर्थयात्रया ॥" ब्रह्मचर्य के पालन से सत्यधर्म के सेवन से, तप एवं संयम की आराधना से मातंगऋषि ने आत्मशुद्धि को प्राप्त किया है । यह आत्म. शुद्धि जीवों को तीर्थों की यात्रा करने से नहीं प्राप्त हुआ करती है। જ્ઞાનના વિષયમાં જ્યારે તે બ્રાહ્મણોએ જીજ્ઞાસા ભાવથી પ્રશ્ન કર્યો ત્યારે મુનિરાજે એને ઉત્તર આ પ્રકારે આપે– ‘धम्मे हरए' त्याल! मन्वयार्थ:-धम्मे हरए-धर्मो हृदः मसि मा३ि५ घम' स१२ । भ, मे धमाथी भी पूजनु अपहरण थाय छे बमे संति तित्थे-ब्रह्मशन्ति તીર્થન બ્રહ્મચર્ય શાન્તિતીર્થ છે. કારણ કે એના સેવનથી સઘળા મળે મુળભૂત રાગ અને દ્વેષને સમુળગો વિનાશ થાય છે. રાગદ્વેષને નાશ થતાં ફરીથી મળેની ઉત્પત્તિ થવાની સંભવના રહેતી નથી. કહ્યું પણ છે. " ब्रह्मचर्येण सत्येन, तपसा संयमे न च ।। मातंगषिर्गतः शुद्धि, न शुद्धिस्तीर्थयात्रया ॥" બ્રહ્મચર્યના પાલનથી, સત્યધર્મના સેવનથી, તપ અને સંયમની આરાધનાથી, માતંગ ઋષિએ આત્મશુદ્ધિને પ્રાપ્ત કરેલ છે. આ આત્મશુદ્ધિ અને તીર્થોની યાત્રા કરવાથી પ્રાપ્ત થતી નથી. અને તે બ્રાહ્મણો આપ ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૨
SR No.006370
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages901
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size49 MB
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