SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 631
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उत्तराध्ययनसूत्रे या भवतो हीलना कृता, हे भदन्त ! तस्य क्षमस्व-तद् हीलनं क्षमस्व, संबन्धसामान्येऽत्र षष्ठी, यत ऋषयो महाप्रसादा भवन्ति ! न खलु मुनयः कोपपरा भवन्ति ॥३१॥ ___ एवं सभार्येण रुद्रदेवपुरोहितेन ऋषौ प्रसादिते सति तस्मिन्नेव क्षणे तस्य मुने शरीराद् यक्षो निर्गतः, ततो मुनिराह मूलम्-- पुस्विच इहि च अणागयंचं, मणप्पओसो न मे अत्थिकोई। जक्खा हि वेयावडियं करेंति, तम्हा हूँ एएँ निहया कुमारा॥३२ की है । सो (भंते-भदन्त) हे भदन्त ! (तस्स खमाह-तस्य क्षमस्व) आप उसको क्षमा करें। क्यों कि-(इसिणो महाप्पसाया हवंति-ऋषयः महाप्रसादाः भवन्ति ) ऋषिजन अपने शत्रुओं पर भी सदा कृपालु रहा करते हैं । (मुणी कोवपरा न हु हवंति-मुनयः कोपपराः न खलु भवंति) मुनिजन अपराधी जनों पर भी क्रोध नहीं किया करते हैं। भावार्थ-पुनः रुद्रदेव ने ऋषिवर से कहा हे नाथ ! इन अज्ञान बालकों ने आप को व्यर्थ में कष्ट पहुँचाया है । ये बिचारे क्या जाने कि आपको कष्ट पहुँचाना चाहिये या नहीं। आप तो हे भदन्त ! कृपा सिन्धु हैं-अतः आप अपने से छोटों पर सदा कृपालु रहें। आप मुनिवर हैं-अतः मुनियों को दृष्टि में तो न कोई उनका श होता है और न कोई उनका मित्र-वे सदा समभावी होते हैं । क्रोध करना तो वे जानते ही नहीं है ॥ ३१॥ ४२ छ, भन्ते-भदन्त ! 3 महन्त! तस्स खमाह-तस्य क्षमस्व मा५ तेमन. क्षमा ४२. भ., इसिणो महप्पसाया हवंति-ऋषयाः महाप्रसादा भवन्ति *पिन तोपताना शत्रुमे। ५२ ५४ सह पाणु २४ा रे छे. णी कोवपरा नहु हवंति-मुनयः कोपपराः न खल्ल भवन्ति भुनिन अपराधीन 6२ पर કદી ક્રોધ કરતા નથી. ભાવાર્થ-ફરી રૂદ્રદેવે ઋષિવરને કહ્યું કે, હે નાથ ! આ અજ્ઞાન બાળકોએ અકારણ આપને ખૂબજ કષ્ટ પહોંચાડયું છે. એ બિચારા શું જાણે કે આપને કષ્ટ પહોંચાડવું ઠીક છે કે નહીં. હે ભદન્ત ! આપ તે કૃપાના સાગર છે. આથી આપ આપનાથી નાના ઉપર સદા કૃપાળું રહે. આપ સુનિવર છે. આથી અનિઓની દ્રષ્ટિમાં સદા સમભાવ હોય છે કેઈ તેને શત્રુ નથી હોતે, કોઈ મિત્ર નથી હોતું. તે કદી પણ ક્રોધ કરવાનું તે જાણતા જ નથી. ૩૧ ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૨
SR No.006370
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages901
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size49 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy