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________________ ___३२९ प्रियदर्शिनी टीका अ८ गा. २० अध्ययनसमाप्तिः भविष्यन्ति । किंच-तैः एतद्धाराधकः, द्वौ लोको अयं लोकः परलोकश्वेत्युभौ लोको, आराधितौ भवतः । इति एतत् सर्व, ब्रवीमि-श्री महावीरस्वामिना यथा कथितं, तथा कथयामि, न तु स्वबुद्धया परिकल्प्येत्यर्थः ॥२०॥ इति श्री विश्वविख्यात-जगदल्लभ-प्रसिद्धवाचक-पञ्चदशभाषा कलित-ललितकलापालापक-प्रविशुद्धगधपद्यनैकग्रन्थनिर्मापकवादिमानमर्दक-श्रीशाहूछत्रपति- कोल्हापुरराजमदत्त" जैनशास्त्राचार्य "-पदभूषित-कोल्हापुरराजगुरुबालब्रह्मचारि-जैनाचार्य-जैनधर्मदिवाकर-पूज्यश्रीघासीलालबतिविरचितायामुत्तराध्ययनसूत्रस्य प्रियदर्शिन्याख्यायां व्याख्यायाम्कापिलीयाख्यं अष्टममध्ययन सम्पूर्णम् ॥ ८॥ तथा (तेहि-तैः) ऐसे मनुष्यरस्नो द्वारा ही (दुवे लोग आराहियाद्वौ लोको आराधितौ) यह लोक और परलोक आराधित होते हैं । (त्ति बेमि-इति ब्रवीमि ) हे जम्बू! श्री महावीर स्वामी ने जैसा कहा है पैसा ही मैं ने तुम से कहा है । अपनी धुद्धि से कल्पित कर नहीं कहाहै॥२०॥ ॥ इस प्रकार यह उत्तराध्ययन सूत्र की प्रियदर्शिनी टीका के" कापिलीय" नामके आठवें अध्ययन का हिन्दी भाषानुवाद संपूर्ण हुआ ॥८॥ २त्नाा ४ दुवे लोग आराहिया-दौ लोको आराधितौ na४ मने पर। साधित मन छ. त्ति-बेमि " इति ब्रवीमि" भ्यू महावीर स्वामीयम કહેલ છે તેમ તમને આ કહું છું. મારી બુદ્ધિથી કલ્પિત કરીને કાંઈ કહેતું નથી.ારના આ પ્રકારે ઉત્તરાધ્યયન સૂત્રની પ્રિયદર્શિની ટીકાના " पिलाय" नामना मा अध्ययनन। ગુજરાતી ભાષા અનુવાદ સંપૂર્ણ ૫૮ उ० ४२ ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૨
SR No.006370
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages901
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size49 MB
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