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________________ ३२६ उत्तराध्ययनसूत्रे झावान् न भवेत् । तथा- याः स्त्रियः पुरुषं-कुलीनमपि प्रलोभ्य - 'स्वमेव मम पतिस्त्वमेव मम जीवितं त्वमेव मम शरणम् , त्वमेव च मम प्रीतिकृत्' इत्यादि वचनैर्वशीकृत्य प्रीतिमुत्पाद्य पुरुषेण सह क्रीडन्ति, यथैवदासैः यथा दासाः स्वा. म्यादेशकारिणो भवन्ति, तथा नारीणां वशवर्ती पुरुषोऽपि किंकरो भवतीत्यर्थः॥१८॥ स्त्रीणामेवातिहेयतामाह नारीसु नो व गिज्झेज्जा, इत्थीविप्पजहे अणगारे । धम्मं च पेसलं नच्ची, तत्थे ठविज भिक्खू अप्पाणं ॥ १९ ॥ छाया-नारीषु नो प्रगृध्येत् , स्त्रियः विप्रजह्यात् अनगारः। ___ धर्म च पेशलं ज्ञात्वा, तत्र स्थापयेद् भिक्षुरात्मानम् ॥ १९ ॥ जीवित को नष्ट कर देती हैं। वैसे ही पुरुष भी स्त्रीके लिये हैं। (जाओ- याः) ये स्त्रियां (पुरिसं पलोभित्ता-पुरुषं प्रलोभ्य) पुरुष को भी विविध प्रकार के हावभाव तथा प्रिय वचनों से लुभाकर उनके साथ (खेलति-क्रीडन्ति ) मनमानी क्रीड़ा किया करती है उनको अपनी इच्छानुसार कार्य कराने में कसर नहीं रखती हैं किस प्रकार ? सो कहते है-(जहाव दासेहि-यथा वा दासैः) जैसे दास स्वामी के आदेश को करने वाले होते हैं, उसी तरह नारी के वशवर्ती हुआ पुरुष भी उनका दास जैसा हो जाता है । तात्पर्य इसका यह है कि जिस प्रकार स्वामी अपनी इच्छानुसार अपने नौकरों के साथ क्रीड़ा करता है-प्रत्येक काम में बैल की तरह उनको जोते रहता है - उसी प्रकार अपने वशवर्ती पुरुष को ये नारियां भी खूब इच्छानुसार जोतती रहती हैं ॥१८॥ है छ. जाओ-याः 40 मिया पुरिस पलोभित्ता-पुरुष प्रलोभ्य पुरुषन विविध २ना माथी तथा प्रिय क्यनाथी मावीन तनी साथै खेलं ति-क्रीडंन्ति મનમાની ક્રિડા કર્યા કરે છે. પોતાની ઈચ્છા અનુસાર કાર્ય કરાવવામાં તે કસર रामती नथी. वा प्रारथी ? ते ४ छ-जहाव दासेहि-यथावा दासैः सभ દાસ સ્વામીના આદેશનું પાલન કરવાવાળા હોય છે એ જ રીતે નારીને વશ બનેલે પુરુષ પણ તેના દાસ જેવો હોય છે. તાત્પર્ય આનું એ છે કે, જે રીતે સ્વામી પિતાની ઈચ્છા અનુસાર નેકરી પાસેથી કામ લેતે હેાય છે, દરેક કામમાં બળદની જેમ ઢસરડા કરાવતા હોય છે. એજ રીતે સ્ત્રિ પિતાને વશ બનેલા પુરુષ પાસે પણ પોતાની ઈચ્છા અનુસાર ઢસરડો કરાવતી રહે છે. ૧૮ ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૨
SR No.006370
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages901
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size49 MB
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