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________________ ३१२ उत्तराध्ययनसूत्रे प्रकारेण आ3 तीर्थकरादिभिः, आख्यातम् कथितम् , कीदृशास्ते आर्या इत्याहयैः आः, अयं साधुधर्मः = प्राणातिपातविरमणादिरूपः, प्रज्ञप्तः= मरूपितः। अयमित्यनेन स्वात्मनि साधुधर्मः प्रतिबोध्य चौरेभ्यः प्रज्ञापनीयः इति सूच्यते ॥८॥ __ यद्येवं तर्हि किं कर्त्तव्यम् ? इत्यत्रोपदिशति-- पाणे ये ना इवाएंज्जा, से समिए ति बुच्चई ताई। तओ से पार्वयं कैम्मं, निजाइ उदंग 4 थलाओ ॥९॥ छाया-माणांश्च नातिपातयेत्, स समित इत्युच्यते नायी। ततोऽथ पापकं कर्म, निर्याति उदकमिव स्थलात् ॥९॥ टीका-'पाणे य' इत्यादिको पार करते है-दूसरे नहीं । ( एवं-एवम् ) ऐसा (आयरिएहि-आर्यैः) उन तीर्थकर गणधर आदिकों ने (अक्खायं-आख्यातम् ) कहा है कि (जेहिं-यैः) जिन्हों ने (इमो साहु धम्मो पन्नत्तो-अयं साधुधर्मः प्रज्ञप्तः) इस साधुधर्मकी प्ररूपणा की है। "इमो" इस शब्दसे सूत्रकारने अपनी आत्मा में वर्तमान जो प्राणातिपातविरमण आदि रूप धर्म है, और जो प्रतिबोध के योग्य चोरों के लिये प्रज्ञापनीय है उसकी सूचना की है। अर्थात् प्राणातिपात आदि के जो स्वयं करता है, कराता है, एवं अनुमोदनाकरता है, वह सर्व दुःखोंसे कभी भी छूट नहीं सकता। ऐसा आदेश उन वीतराग प्रभु का है जिन्होंने इस साधुधर्म की प्ररूपणा की है ॥८॥ यदि ऐसा है तो फिर क्या करना चाहिये ? इस विषय में सूत्रकार उपदेश कहते हैं-'पाणे य ना इवाएज्जा से'-इत्यादि। ते तीथ ४२ ग५५२ २ मे अक्खाय-भाख्यातम् ४६ है जेहिं-यैः भो इमो साहुधम्मो पन्नत्तो-अयं साधुधर्मः प्रज्ञप्तः मा साधु धर्मनी ५३५५॥ ॥ छ. " इमो" मा ४थी सूत्रधारे पोताना मामामा वर्तमान प्रातिपात વિરમણ આદિ રૂપ ધર્મ છે અને જે પ્રતિબંધને અને ચરોને માટે પ્રજ્ઞાપનીય છે તેની સુચના કરેલ છે. અર્થાત્ -પ્રાણાતિપાત આદિના સ્વયં કરનાર છે, કરાવનાર છે, અને અનુમોદન આપનાર છે. તે સર્વ દુખેથી કદી પણ છુટી શકતા નથી. એ આદેશ તે વીતરાગ પ્રભુને છે. જેઓ એ આ સાધુ ધર્મની પ્રરૂપણા કરેલ છે. ૮ જે એમ છે તે પછી શું કરવું જોઈએ? આ વિષયમાં સૂત્રકાર ઉપદેશ ४ छ-" पाणे य ना इवाएज्जा से" त्यादि. ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૨
SR No.006370
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages901
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size49 MB
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