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________________ प्रियदर्शिनी टीका. अ०७ गा० ३० सप्तमाध्ययन समाप्तिः भावप्रधानो निर्देश: । ' चेव ' इत्यत्र च शब्दः समुच्चये, एवं शब्देऽनुस्वारलोप आर्षत्वात् । तत्र बालभावं - बालत्वं त्यक्त्वा, अचालम् = अबालत्वं सेवने, इति ब्रवीमि - अस्य व्याख्या पूर्ववत् ॥ ३० ॥ इति श्री विश्वविख्यात - जगद्वल्लभ-प्रसिद्धवाचक - पञ्चदशभाषा कलित - ललितकलापाला पक-प्रविशुद्धगद्यपद्यनैकग्रन्थनिर्मापकवादिमानमर्दक- श्रीशाहू छत्रपति - कोल्हापुरराजप्रदत्त - " जैनशास्त्राचार्य " - पदभूषित - कोल्हापुर राजगुरु - बालब्रह्मचारि - जैनाचार्य - जैनधर्मदिवाकर - पूज्यश्रीघासीलालवतिविरचितायामुत्तराध्ययनसूत्रस्य प्रियदर्शिन्याख्यायां व्याख्यायाम्एडकीयाख्यं सप्तममध्ययनं - सम्पूर्णम् ॥ ७ ॥ २८५ तोल करके विचार करके ( खलु - खलु ) निश्चय से ( बालभावं चइउणबालभावं त्यक्त्वा ) उनमें से बालपने का परित्याग कर ( मुणि- मुनिः ) मुनि (अवाल - अवालम् ) पण्डितपने का ( सेवई - सेवते ) सेवन करता है। (ति बेमि- इति ब्रवीमि ) हे जम्बू ! जैसा मैं ने श्रीभगवान् महावीर के मुख से सुना है वैसा ही तुम से कहा है ॥ ३० ॥ ॥ यह श्री उत्तराध्ययन सूत्र की प्रियदर्शिनी टीका के एडकीय नाम के सप्तम अध्ययन का हिन्दी भाषानुवाद संपूर्ण हुआ ॥ ७ ॥ चइउण - बालभाव त्यक्त्वा भांथी मासानो परित्याग उरी मुणि-मुनिः भुनि चंडितपणानु सेवई - सेवते सेवन रै छे इति - ब्रवीमि डेभ्यू ! नेवु भें ભગવાન મહાવીરના મુખેથી સાંભળ્યુ છે તેવુંજ તમને કહેલ છે ૩૦થી આ શ્રી ઉત્તરાધ્યયન સૂત્રની પ્રિયદર્શિની ટીકાના " मेडडीय " नाभना सातमा अध्ययनने। ગુજરાતી ભાષા અનુવાદ સંપૂણું રાણા ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૨
SR No.006370
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages901
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size49 MB
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