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प्रियदर्शिनी टीका अ० ५ गा. १६ धनस्यादिगृद्धस्याकाममरणम् १५३ णोल्लट्य, अधर्मन धर्मोऽधर्मः-धर्मप्रतिपक्षः प्राणातिपातादिस्त, प्रतिपद्य कर्तव्यतया स्वीकृत्य, बालः अज्ञः, मृत्युमुखं मरणं-मृत्युस्तस्यमुखमिव मुखं संमुखं प्राप्तः सन्-मरणासन्नः सन्नित्यर्थः, अक्षे भग्न इव शोचति । अयं भावः-यथा अक्षभङ्गे शाकटिकः शोचति, तथा बालोऽपि मरणकाले पश्चात्तापं करोति-हा ! मया हिंसादीनि दुष्कर्माणि कृतानि अधुना तत्फलं भोक्तव्यमित्यादि ॥ १५ ॥ शोचनानन्तरं च किमसौ करोतीत्याह
मूलम् तओ से मरणंतम्मि, बाले संतस्सई भया । अकाँम मरणं मरइ, धुत्ते वा कलिंणा जिएं ॥ १६ ॥
अन्वयार्थ-(एवं-एवं) शकटवाहक की तरह (बाले-बालः) बाल अज्ञानी जीव (धम्म-धर्मम् ) श्रुतचारित्ररूप अथवा क्षान्ति आदि रूप धर्म का (विउक्कम्म-व्युत्क्रम्य ) विशेषरूप से उल्लंघन कर (अहम्म -अधर्मम् ) प्राणातिपातरूप अधर्म को (पडिवज्जिया-प्रतिपद्य) स्वीकार कर के (मच्चुमुहं पत्ते-मृत्युमुखं प्राप्तः ) मृत्यु के मुख में पहुँचा हुआ (अक्खे भग्गे व सोयइ-अक्षे भग्ने इव शोचति) धूरी के टूट जाने पर उस गाडी चलाने वाले की तरह परिताप को माप्त होता है। इसका तात्पर्य इस प्रकार है-जैसे धूरा के टूट जाने पर गाड़ी चलाने वाला व्यक्ति शोच फिकर में पड़ जाता है उसी प्रकार बाल अज्ञानी जीव भी मरणकाल में पश्चात्ताप का भागी बन जाता है। उस समय वह विचार करता है-हाय ! मैं ने पहिले हिंसादिक दुष्कर्मो को अज्ञानवशवर्ती होकर हँसते २ किया अब यहाँ उसका फल रोते २ भोगना पड़ रहा है ॥१५॥
म-क्याथ-एवं-एवं डी iना२नी भा४ बाले-बालः मास मज्ञानी १ धम्म-धर्मम् श्रुत यारित्र३५ अथवा शान्ति माहि३५ यमन विउक्कमव्युत्क्रम्य विशेष ३५थी न 3री अहम्म-अधर्मम् प्रातिपात३५ मधमनी पडिवज्जिया-प्रतिपद्य स्वी२ ४री मुच्चुमुहं पत्ते-मृत्युमुखं प्राप्तः भृत्युना भानामा पायी rdi अक्खे भग्गे व सोयइ-अक्षे भग्ने इव शोचति घरीना तूट. पाथी એ ગાડી ચલાવવાવાળાની જેમ સંતાપ કરે છે. આનું તાત્પર્ય આ પ્રમાણે છે–જેમ ધરી તૂટવાથી ગાડી ચલાવનાર વ્યકિત ફીકર ચિંતામાં પડી જાય છે એજ રીતે બાલ અજ્ઞાની જીવને પણ મરણકાળે પશ્ચાત્તાપ થાય છે એ સમયે તે વિચાર કરે છે–હાય! મેં પહેલાં અજ્ઞાનવશ બનીને હિંસાદિક દુષ્કર્મો હસતાં હસતાં કર્યા, હવે તેનાં કડવાં ફળમારેજ રેતાં રાતાં ભેગવવાં પડે છે ૧પા उ०२०
ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૨