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________________ प्रियदर्शिनी टीका अ०५ गा०११ धनस्यादिगृद्धस्य रोगावस्थायां पश्चात्तापः १४५ उक्तमर्थ स्पष्टीकुर्वन् प्राह तओ पुट्ठो आयंकेणं, गिलाणो परितप्पंइ। पंभीओ परलोगस्स, कम्माणुप्पेहि अप्पणो ॥११॥ छाया-ततः स्पृष्टः आतङ्केन, ग्लानः परितप्यते । प्रभीतः परलोकस्य, कर्मानुप्रेक्षी आत्मनः ॥ ११॥ टीका-'तओ' इत्यादि। ततः तदनन्तरम् अष्टकममलसंचयानन्तरं, यद्वा तस्मात्-दण्डारम्भणाधुपाजितकर्मरूपात् कारणात् आतङ्केन-आशुघातिशूलातिसारादिरोगेण स्पृष्टः सन् , ग्लानः ग्लानि प्राप्तः, तथा-आत्मनः कर्मानुपेक्षी-क्रियत इति कर्म-क्रिया तदबालजीव होते हैं, वे भी ज्ञानावरणादिक कर्मों के मल से उपचित मल वाले होकर उनके उदयकाल में इसी जन्म में नाना प्रकार के कष्टों को भोगते २ दुःखित होकर नष्ट हो जाते हैं । अर्थात्-मन वचन एवं काय से मत्त बना हुआ बालजाव धन एवं स्त्री आदि पदार्थों में गृद्ध घनकर द्रव्यकर्म एवं भावकर्मरूप मैल से सदा मलिन होता रहता है। अन्त में इसकी हालत केंचुआ (अलसीया ) जैसी होती है ॥१०॥ 'तओ पुट्ठो' इत्यादि। अन्वयार्थ (तओ-ततः) अष्टकर्मरूपी मैल के संचय करने के बाद, अथवा दण्ड के आरंभ आदि से उपार्जित कर्मरूप कारण से होने वाले (आयंकेणं-आतडेन) आशुप्राणापहारक शूल विसूचिका अतिसार आदि रोगसे (पुट्ठो-स्पृष्टः) युक्त होकर (गिलागो-ग्लानः) ग्लानिको प्राप्त અને અંતે તેને નાશ થાય છે એ જ રીતે જે બાલ અજ્ઞાની જીવ હોય છે તે પણ જ્ઞાનાવણયાદિક કર્મોના મળથી રગદેળાએલા રહે છે, અને તે કર્મોના ઉદય કાળમાં આજ જન્મમાં તરેહ તરેહનાં કષ્ટોને ભોગવતાં ભોગવતાં દુઃખી થતાં નાશ પામે છે. અર્થાત્ મન વચન અને કાયાથી મત્ત બનેલ બાલજીવ ધન અને સ્ત્રી આદિ પદાર્થોમાં આસક્ત બનીને દ્રવ્ય કર્મ અને ભાવ કમરૂપી મેલથી સદા મલીન થતું રહે છે. અંતમાં એની દશા અળસીયાના જેવી થાય છે " तओ पुट्ठो'' त्यात. ___ सन्या-तओ-ततः २मा प्रश्नां भ३पी भेसन संयय या पछी 2424। माम माहिथी पात भ३५ ॥२४थी थवावाणा आयंकेणं-आतंकेन माशु प्रा॥५४२४ शुस विसूथिला माहि शपथी पुद्रो-स्पृष्टः धेने गिलोणो-ग्लानः ५७मी थनार तथा अप्पाणो कम्माणुप्पेहि-आत्मनःकर्मानुप्रेक्षी उ० १९ ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૨
SR No.006370
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages901
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size49 MB
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