________________
૨૨૮
उत्तराध्ययनसूत्रे उक्तं च-अलाभो त्ति न सोइज्जा, तवोत्ति अहियासए । छाया-अलाभ इति न शोचेत्, तप इत्यध्यासीत ॥
च-पुनः अकालं-प्रतिक्रमण-प्रतिलेखनाऽपृच्छना-स्वाध्याय-भिक्षाचरीप्रभृतिकार्याणामयोग्य समयं च विवर्य-परित्यज्य, काले-यस्य कार्यस्य यः कालस्तस्मिन्नेव, कालं-तत्तकालोचितं प्रतिक्रमण-पतिलेखनादिकं कार्य समाचरेत-कुर्यात् ।
अयं भावः-यो यस्य अङ्गप्रविष्टादेः श्रुतस्य काल उक्तस्तस्य श्रुतस्य तस्मिन्नेव काले स्वाध्यायः कार्यः, नान्यदा, विघ्नसंभवात्, तीर्थंकराज्ञाविरोधाच्च । अलाभ हो तो वहीं लाभ की आशा से समय को उल्लंघन कर बहुत समय तक घूमता ही रहे। भगवान ने कहा भी है
"अलाभो त्ति न सोइजा, तवोत्ति अहिया सए" साधु को जब अपने समयानुसार भिक्षा का लाभ न हो तो उस समय उसे शोच नहीं करना चाहिये किन्तु ऐसा समझना चाहिये कि यह एक बड़े भारी तप का लाभ हुआ है। प्रतिक्रमण, प्रतिलेखना, अपृच्छना, स्वाध्याय तथा भिक्षाचर्या का जो समय नियत है उस समय के अतिरिक्त (अकालं च विवज्जित्ता-अकालं च विवर्य ) शेष उनका अकाल का समय है अतः उसे छोडकर (कालं) जोर, कार्य जिस समय में किये जाने चाहिये उन्हें (काले) उसी समय में (समायरे -समाचरेत् ) करे। ___ भावार्थ--जिस अंगप्रविष्ठ आचारांग आदि सूत्रों के स्वाध्याय करने का जो समय नियत है उस समय में उसी श्रुत की स्वाध्याय આશાથી સમયનું ઉલંઘન કરીને ઘણા સમય સુધી ફરતા રહે. ભગવાને કહ્યું છે કે अलाभोत्ति न सोइज्जा तवो त्ति अहियासए साधुनन्यारे पोताना समय मनुसार ભિક્ષાને લાભ ન થાય તે તે સમયે તેણે સોચ ન કરવો જોઈએ પરંતુ
मेम सम नये, २ मे मारे तपन दाम भन्यो, प्रतिक्रमण, प्रतिलेखना. आस्पृच्छना. स्वाध्याय. तथा निक्षाययान २ समय नियत छे से समय सिपाय, अकालं च विवज्जिता-अकाल च विवर्य शेष तन मन। समय छ, माथी मेन छ।, कालं रे २ ४ २२ समयमा ४N aai नमे मे से 4 काले समयमा समायरे-समाचरेत् ४२.
ભાવાર્થ—અંગ પ્રવિષ્ટ આચારાંગ આદિ સૂત્રોને સ્વાધ્યાય કરવાને જે સમય નિયત છે એ સમયમાં એજ શ્રતને સ્વાધ્યાય કરવા જોઈએ, બીલ
ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૧