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नयपदेशप्रयदर्शिनी टीका अ० १ गा. २३ सूत्रोच्चारणदोषाः १६७
द्रव्यभावतो व्यत्यानेडितं सूत्रे कुर्वतोऽर्थस्य विसंवादः इत्यादि विवक्षा मागिव, यया दीक्षा निरर्थिका ।
७ अपरिपूर्ण-मात्राभिः, पदै श्चरणै बिन्दुभि वर्णैश्च । मात्राभिरपरिपूर्ण 'धम्म मंगलमुकिलु' । पदैरपरिपूर्ण-यथा-" धम्म उकिष्टुं "। चरणैरपरिपूर्ण-यथा'धम्मो मंगलमुक्किट्ठ' इत्यादि गाथायां कमपि चरणं परित्यज्य पठनम् । बिन्दुभिरपरिपूर्ण-यथा 'धम्मो मगलमुकिलु" इति । वर्णैरपरिपूर्ण यथा-'धम्मो ल उकिटं' इत्यादि । मात्राभिः पदैश्चरणैविन्दुभिर्वर्णैरपरिपूर्णे उच्चारिते तदेव प्रायश्चित्तं त एव दोषाश्च भवन्ति । में व्यत्यानेडित कर देता है तब उसके अर्थ में स्वभावतः विसंवाद होने लगता है और इससे जो हानि होती है यह अधिकाक्षर तथा हीनाक्षर के दोष के स्वरूपनिरूपण में बता चुके हैं॥६॥अपरिपूर्ण-जहां मात्राओं से, पदों से, चरणों से, बिन्दुओं से, वर्णो से अपरिपूर्णता होती है वहां अपरिपूर्ण दोष माना जाता है, जैसे " धम्मो मंगलमुक्किटं" की जगह "धम्ममंगलमुक्किट्ठ" इस प्रकार " ओकार" की मात्रा हीन कर पढना। "धम्म उकिट" ऐसा मंगलपद हीन कर पढना। किसी चरण कोपाद को-हीन कर पढना, किसी बिन्दु को हीन कर पढना, किसी वर्ण को हीन कर पढना सो क्रमशः मात्रा आदिकों से अपरिपूर्ण दोष माना गया है । इस प्रकार के उच्चारण करने पर एक तो आगम की आशातना होने से प्रायश्चित का भागी होना पड़ता है दूसरे विसंवादादि अनेक अनर्थ उत्पन्न हो जाते हैं। इससे जीव को मुक्ति का लाभ नहीं हो सकता है। तथा दीक्षा में निरर्थकता की प्रसक्ति का प्रसंग प्राप्त होता है ॥ ७॥ વિસંવાદ થવા લાગે છે અને એથી જે હાની થાય છે તે અધિકાક્ષર તથા હિનાક્ષરના દેશના નિરૂપણમાં બતાવવામાં આવેલ છે.
(6) अपरिपूण न्यो मात्रामाथी पहोथी, यशोथी, मिन्दुमाथी, વર્ણથી, અપરિપૂર્ણતા હોય છે ત્યાં “અપરિપૂર્ણ ” દોષ માનવામાં આવે છે. “धम्मो मंगल मुक्किठें" नया धम्ममंगलमुक्किळं २॥ शत, ओकारनी मात्रा डीन ४३ वांयj, “ घम्म उक्किळं "म मत ५४ हीन ४२ वाय, કઈ વર્ણને હીન કરી વાંચવું તે ત્રઃ માત્રા આદિથી અપરિપૂર્ણ દોષ માનવામાં આવેલ છે. આ પ્રકારનું ઉચ્ચારણ કરવાથી એક તે આગમની આશાતના થવાથી પ્રાયશ્ચિત્તના ભાગી થવું પડે છે બીજું વિસંવાદાદિ ઘણુ અનર્થ ઉત્પન્ન થાય છે, આથી જીવને મુક્તિને લાભ મળી શકતું નથી. આથી દીક્ષામાં નિરર્થકતાની પ્રશક્તિનો પ્રસંગ પ્રાપ્ત થાય છે.
ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૧