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सकता है जिसे जीव अजीव का ज्ञान है जो जीवादि का ज्ञाता है वह क्रम से मोक्ष को प्राप्त करता है पीछली अवस्था में भी चारित्र ग्रहण करनेवाला मोक्ष का अधिकारी हो सकता है।
(५) पांचवें अध्ययन में छहकाया का रक्षण निरवद्य भिक्षा ग्रहण से होता है, अतः भिक्षा की विधि कही गई है।
(६) छठवें अध्ययनमें-'निरवद्य भिक्षा लेनेसे अढारहस्थानोंका शास्त्रानुसार आराधन करता है, उन अढारहस्थानो का वर्णन है। उनमें सत्य और व्यवहार भाषा बोलनी चाहिये।
(७) सातवें अध्ययन में 'अढारहस्थानों का आराधन करने वाले मुनिको कोनसी भाषा बोलनी चाहिये' इस के लिये ४ भाषाओं का स्वरूप कहा गया है। उन में सत्य और व्यवहार भाषा बोलना चाहिये।
(८) आठवें अध्ययन में-'निरवद्य भाषा बोलनेवाला पांच आचाररूप निधान को पाता है। अतः उस आचाररूप निधान का वर्णन है।
(९) नववे अध्ययन में पांच आचार का पालन करने वाला ही विनयशील होता है' अतः विनय के स्वरूप का निरूपण किया है।
(१०) दशवें अध्ययन में-'पहले कहे हुए नवों अध्ययनो में कही हुई विधिका पालन करने वाला ही भिक्षु हो सकता है' इस लिए भिक्षु के स्वरूप का वर्णन किया है ॥
निवेदक समीर मुनि.
શ્રી દશવૈકાલિક સૂત્રઃ ૨