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________________ आचारमणिमञ्जूषा टीका, अध्ययन १० गा. १-२ २५५ चित्तसमाहितः प्रसन्नचेतसा प्रवचनपरायणो भवति, अपिच स्त्रीणां वशम: अधीनतां, न गच्छति-न याति । तथा वान्तं-परित्यक्तं विषयरसं, न प्रत्याददातिन पुनः सेवते स भिक्षुः, 'भिक्षु'-शब्दप्रतिपाद्यो भवति ॥१॥ मूलम्-पुढवि न खंणे ने खणावए, सीओदगं न पिए नैं पियौवए। अंगणि सत्थं जहा सुनिसि, तं" न जले ने जलावए जेस" भिक्खू ॥२॥ छाया-पृथिवीं न खनति न खानयति, शीतोदकं न पिबती न पाययति । अग्नि शस्त्रं यथा सुनिशितं, तं न ज्वलयति न ज्यालयति यः स भिक्षः॥२॥ टीका-'पुढविं' इत्यादि यः साधुः पृथिवीं भूमि न खनति=न विदारयति स्वयम् , न खानयति परेण, खनन्तमन्यं नानुजानाति, इदं च सर्वत्र योज्यम् , तथा शीतोदकं सचित्तजलं न पिबति, न पाययति परेण, तथा सुनिशितं सम्यक्तीक्ष्णीकृतं शस्त्रं यथा शस्त्रमिव शस्त्रसदृशमित्यर्थः तं सुतीक्ष्णशस्त्रसदृशत्वेन विश्रुतम् अग्निं च न ज्वलयति न च परेण ज्यालयति स भिक्षुः ॥२॥ हैं; प्रवचन के अनुसार प्रवृत्ति करते हैं, जो स्त्री के वशमें नहीं रहते तथा त्यागे हुए विषय भोगों का फिर सेवन नहीं कहते थे भिक्षु कहलाने योग्य होते हैं ॥१॥ 'पुढविं' इत्यादि । जो स्वयं भूमिको नहीं खोदते, दूसरे से नहीं खुदवाते; खोदते हुए को भला नहीं जानते, स्वयं सचित्त जल नहीं पीते, दूसरे से नहीं पिलवाते; पीते हुए को भला नहीं जानते, तीक्षण शस्त्र के समान अग्निको स्वयं नहीं जलाते, दूसरे से नहीं जलवाते और न जलाते हुए को भला जानते हैं वे भिक्षु हैं ॥२॥ કરે છે, સ્ત્રને વશ રહેતા નથી તથા ત્યાગેલા વિષયભેગેનું ફરી સેવન કરતા નથી તેઓ ભિક્ષુ કહેવાવાને યોગ્ય બને છે. (૧) पुढवि. त्याहिम पाते मूभिने मोहता नथी भने मीत पासे બે દાવતા નથી, ખેદનારને ભલે જાણતા નથી, પિતે સચિત્ત જળ પીતા નથી, બીજાને પીવડાવતા નથી, પીનારને ભલે જાણતા નથી, તીક્ષણ શસ્ત્રની સમાન અગ્નિને પોતે બાળતા નથી, બીજા પાસે બળાવતા નથી, અને બાળનારને ભલે જાણતા નથી, तमे भिक्षु छे. (२) શ્રી દશવૈકાલિક સૂત્રઃ ૨
SR No.006368
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages287
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size15 MB
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