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________________ आचारमणिमञ्जूषा टीका, अध्ययन ७ क्वचिद्व्यवहारे पृष्टस्यापृष्टस्य वा साधो पामतिषेधमाह-'सव्वुक्कसं' इत्यादि । मलम-सव्वुकसं परग्धं वं अउलं नत्थं एरिस । अविकियमवर्तव्वं अवियत्तं चेवें नो" वएँ ॥४३॥ छाया-सर्वोत्कर्ष पराध वा अतुलं नास्ति ईदृशम् । अविकृतमवक्तव्यम् अपीतिकं चैव नो वदेत् ॥४३॥ टीका-'सब्बुकसं' इत्यादि । इदं वस्तु सर्वोत्कर्ष =सर्वतः सर्वापेक्षया उत्कर्षो यत्र तत्, सर्वोत्तममित्यर्थः, वा अथवा पराधम् अधिकमूल्यक, तथा अतुलम् अनुपमं, तथा इतोऽ न्यत् ईदृशम् एतत्सदृशं नास्ति, अविकृतं यथास्वरूपावस्थितम् अवक्तव्यम= अकथनीयम् अनन्तगुणवत्त्वात, च-पुनः अनीतिकंनोत्पद्यते प्रीतिः-सुखं यस्मात्तत् दुःखकरमित्यर्थः, इति नो एच-नैव वदेत् । एवं भाषणे श्रोतृणां परस्पराऽप्रीतितदन्तरायादिदोपप्रसङ्गाचारित्रहानिरिति भावः ॥४३॥ उदय से हुई है, तथा किसी कारण से घातको प्राप्त हुए व्यक्ति के प्रति ऐसा कहे कि प्रहार से इसका घात हुआ है ॥ ४२ ॥ व्यवहारिक विषय में पूछे जाने पर या न पूछे जाने पर बोलने का निषेध करते हैं-'सव्वुक्कसं' इत्यादि।। यह वस्तु सब से अच्छी है, अधिक मूल्यवान् है, अनुपम है, इसके समान दूसरी वस्तु नहीं है, यह वस्तु विकृत नहीं हुई है अर्थात् जैसी की तैसी है, बहुत गुणवाली होने से अवर्णनीय है, यह वस्तु अच्छी नहीं है, हानिकारक है। ऐसा नहीं कहना चाहिए। ऐसा कहने से सुनने वालों में परस्पर अप्रीति होती है ઉદયથી ઉત્પન્ન થઈ છે. તેમ કઈ કારણથી ઘાતને પ્રાપ્ત થએલી વ્યકિતની પ્રતિ सेभ हे महारथी सेना घात थय। छे. (४२) વ્યાવહારિક વિષયમાં પૂછવામાં આવતાં યા ન પૂછાતાં સાધુને બલવાને निषेध ४९ छे-सब्बुक्कसं० त्याहि. આ વસ્તુ બધાથી સારી છે, અધિક મૂલ્યવાન છે, અનુપમ છે. એના જેવી બીજી કોઈ વસ્તુ નથી, આ વસ્તુ વિકૃત થઈ નથી, અર્થાત્ જેવી ને તેવી જ છે, બહુ ગુણવાળી હોવાથી અવર્ણનીય છે, આ વસ્તુ સારી નથી, હાનિકારક છે, એમ ન કહેવું જોઈએ. એમ કહેવાથી સાંભળનારાઓમાં પરસ્પર અપ્રીતિ થાય છે અને શ્રી દશવૈકાલિક સૂત્રઃ ૨
SR No.006368
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages287
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size15 MB
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