SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 374
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीदशवैकालिकसूत्रे __ यथा येन विषाक्तमन्नं सम्पाद्यते तदितरस्य हस्तादप्युपादीयमानं तदेवान्नं महतेऽनय कल्पते, तथा पुरःकर्मदूषितमपि । अत्रायं विशेषः-यत्र गृहे पुरःकर्म समाचरितं तत्र तस्मिन् दिवसे सर्व द्रव्यमकल्प्यमेव ॥३२॥ मूलम्-एवं उदउल्ले ससिणिद्धे ससक्खे मट्टिया ऊसे । हरियाले हिंगुलए, मणोसिला अंजणे लोणे ॥३३॥ १८ १३ गेरुयावन्निय-सेडिय,-सोरहिज-पिट्ठ-कुक्कुसकए य । उक्किट्ठ-मसंसट्टे, संसद्धेचेव बोद्धव्वे ॥३४॥ छाया---एवम् उदका: सस्निग्धः, सरजस्को मृत्तिका ऊषः। हरितालं हिगुलकं, मनःशिलाऽञ्जनं लवणम् ॥३३॥ गैरिक-णिक-सेटिका,-सौराष्ट्रिका-पिष्ट-कुक्कुसाः कृतश्च । उत्कृष्टमसंसृष्टः, संमृष्ट एव बोद्धव्यः ॥३४॥ सान्वयार्थ:--एवं-इसी प्रकार उदउल्ले = टपकते हुए जलसहित ससिणिद्धे-गीले रेखाओंसे सहित या ससरक्खे = सचित्त रजसे गुण्ठित सहित हाथ आदि हो, (तथा) मट्टिया-सचित्त मिट्टी उसे = साजीखार हरियाले = हरताल हिंगुलए-हिंगलू मणोसिला= मैनसिल अंजणे = सौवीराजन लोणे-सचित्त नमक | गेरुय = गेरु वन्नि = पीली मिट्टी सेडिय = श्वेत मिट्टी-खड़ी सोरटिज = सोरठी मिट्टी-गोपीचन्दन पिट्ठ = तत्कालका पीसा हुआ आटा (तथा) कुक्कुस = तत्कालके खांडेहुए धान्यके तुष-भूसे-से भरे हुए य = और उकिट्ठ = चाकूसे बनाये हुए कोले, तू बे, ककडी आदिके कोमल कोमल टुकडे, इन पूर्वोक्त किसी वस्तुसे भी असंसटे = खरडे-लिपे-हुए हाथ आदिको साधुके लिए किसी प्रकारसे अलिप्त बनाया हो, धोकर या पूछकर साफ किया हो, उत्तर-हे शिष्य ! जैसे-किसीने विष-मिश्रित आहार बनाया हो तो बनाने वालेसे न लेकर दूसरेके हाथसे लिया जाय तो भी वह आहार महान् अनर्थकारी होता है, उसी प्रकार, पुरःकर्मदूषित आहार आदि भी अनर्थकारक होता है। * इतनी फिर विशेषता समझनी चाहिये कि, जिस घरमें पुरःकर्म किया गया हो उस घरमें उस दिन सब द्रव्य अकल्प्य होते हैं ॥३२॥ ઉત્તર–હે શિષ્ય ? જેવી રીતે કેઈએ વિષમિશ્રિત આહાર બનાવ્યો હોય તો બનાવનારના હાથથી ન લેતાં બીજાના હાથથી લેવામાં આવે તો પણ એ આહાર મહાન અનર્થકારી થાય છે, તેમ પુર કમંદૂષિત આહાશદિ પણ અનર્થકારક થાય છે. એટલી વિશેષતા સમજવી જોઈએ કે જે ઘરમાં પુરા કર્મ કરવામાં આવ્યું હોય તે ઘરમાં એ દિવસે બધાં દ્રવ્ય અકલ્પનીય બને છે. (૩૨) શ્રી દશવૈકાલિક સૂત્રઃ ૧
SR No.006367
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages480
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy