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________________ श्रोदशवैकालिकसूत्रे ___ पुनरपि पृथिव्यादिकायषट्कोपरि पृथिव्यादीनां निक्षेपणेन प्रथमचतुर्भङ्गीस्थितप्रथमभङ्गस्य सचित्ते सचित्तस्ये'-त्येवंरूपस्य षट्त्रिंशद्धेदा भवन्ति, तद्यथा -- (१) पृथिव्यां पृथिव्याः, (२) अपाम् , (३) तेजसः (४) बायोः, (२) वनस्पतेः, (६) त्रसस्य निक्षेपणमिति षट् (६)। एवमकायादावपि प्रत्येककायस्य निक्षेपणेन षट्त्रिंशद् भेदा जायन्ते । एवं शेषभङ्गत्रयस्यापि प्रत्येकं षट्त्रिंशद् भेदा भवन्ति । संकलनया प्रथमचतुर्भङ्गयाश्चतुश्चत्वारिंशदुत्तरमेकशतं भङ्गा भवन्ति । उक्तप्रकारेण शेषचतुर्भङ्गीद्विकस्यापि भङ्गसम्पादने संकलनया सर्वे भेदा द्वात्रिंशदधिकानि चतुः शतानि (४३२)सम्पद्यन्ते । (१) अचित्त पर अचित्तका, (२) अचित्त पर मिश्रणका । (३) मिश्रपर अचित्तका, (४) मिश्रपर मिश्रका नक्षेप करना ॥३॥ फिर भी पृथिवी आदि षट्काय पर पृथिवीकायका निक्षेपण करनेसे प्रथम चतुर्भगीके 'सचित्त पर सचित्तका' इस प्रथम भंगके छत्तीस भंग होते हैं । वे इस प्रकार हैं-- (१) पृथिवी पर पृथिवीका, (२) अप्का, (३) तेजका, (४) वायुका, (५) वनस्पतिका और (६) त्रसका निक्षेपण करना । इसी प्रकार अप्काय आदि पर पृथिवीकाय आदि छह कायोंका निक्षेपण करनेसे छत्तीस भंग होते है, अर्थात् छह काय पर छह कायका निक्षेपण होता है अतः छहसे छह का गुणन करने से प्रथम भंगके छत्तीस भेदोंकी संख्या निकलती है । ऐसे 'सचित्त पर सचित्तका' 'सचित्त पर मिश्रका' मिश्र पर सचित्तका, और मिश्र पर मिश्रका' इन सब (४) भंगोंको छत्तीस छत्तीस संख्या जोड़ देनेसे (३६+३६+३+३६)-एकसो चवालीस (१४४) भंग हो जाते हैं। दूसरी दो चौभंगियोंके भी इतने ही भंग होते हैं, उनको जोड़नेसे चार सौ बत्तीस (४३२) भंग होते हैं। (१) मयित ५२ मथित्तनु, (२) मथित्त ५२ मिश्रनु (3) मिश्र ५२ मयित्तनु, (૪) મિશ્ર પર મિશ્રનું નિક્ષેપણ કરવું. ૩ વળી પણ પૃથિવી આદિ શકાય પર પૃથિવીકાયનું નિક્ષેપણ કરવાથી પ્રથમ ચઉભંગીના સચિત્ત પર સચિત્તનું એ પ્રથમ ભાંગાના છત્રીસ ભાંગા થાય છે. તે આ પ્રમાણે છે – (१) पृथिवी ५२ पृथिवीनु, (२) अ५ (१) नु (3) तेनु (४) वायुनु, (५) 41पतिनु, (6) उसनु निक्षेप ४२. . એ રીતે અપકાય આદિ પર પૃથિવીકાય આદિ છ કાર્યોનું નિક્ષેપણ કરવાથી છત્રીસ ભાંગા થાય છે, અર્થાત છ કાય પર છકાયનું નિક્ષેપણ થાય છે. એટલે છને છએ ગુણવાથી પ્રથમ ભંગના છત્રીસ ભેદેની સંખ્યા નીકળે છે. એમ ‘સચિત્ત પર સચિત્તનું 'सथित्त ५२ मिश्रनु' भित्र ५२ सथित्तनु' भने 'मिश्र ५२ मिश्रनु' से मया (४) Hinी छत्रीस-छत्रीस सेयी वांथी (38+38+3+36) से। युवाणीस (१४४) ભાંગાં થાય છે. બીજી બે ચૈભંગીઓના પણ એટલાજ ભેટ થાય છે, એને જોડવાથી ચાર શ્રી દશવૈકાલિક સૂત્રઃ ૧
SR No.006367
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages480
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size27 MB
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