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अध्ययन ५ उ. १ गा० २३ भिक्षार्थ स्थितस्य कायचेष्टाप्रकारः ही देखे. (भिक्षाकी प्राप्ति न हो तो) अयंपिरो=कुछ भी नहीं बोलता हुआ अर्थात् बड़बड़ाहट नहीं करता हुआ वहां से नियट्टिज्ज वापस लौट जावे ॥२३॥
टीका-'असंसत्तं०' इत्यादि । असंसक्तम् आसक्तिरहितं यथास्यात्तथा प्रलोकेतपश्येत् , अन्यथा रागादिसम्भवात् । अतिदूरं दातुरागमनप्रदेशात्परं नावलोकेत, साधौ तस्करतादिशङ्कासंभवात् । उत्फुल्लं-स्मेरं यथा स्यात्तथा नेत्रे विस्फार्येत्यर्थः ने विनि
ायेत् न पश्येत् । कदाचिद्भिक्षाया अलाभे अजल्पन्=दैन्योपालम्भवचनानि अब्रुवन् निबत प्रत्यावर्त्तत।
'असंसत्तं' इति पदेन दृष्टयनुरागोऽपाकृतः। 'नाइदूरा०' इत्यादिना साधौ चौरत्वाद्याशङ्का निराकृता । 'उप्फुल्लं०' इत्यादिना, वराकेणानेन साधुना नावलोकितो नाप्यनुभूत एतादृशो विभवोऽतोऽयं दीन' इत्याद्याशङ्का व्युदस्ता ॥२३॥
मूलम्-अइभूमि न गच्छिज्जा गोयरग्गगओ मुणी । ___ कुलस्स भूमि जाणित्ता मियं भूमि परक्कमे ॥२४॥ छाया-अतिभूमिं न गच्छेत् , गोचराग्रगतो मुनिः ।
___ कुलस्य भूमि ज्ञात्वा, मितां भूमि पराक्रमेत् ॥२४॥ सान्वयार्थः--गोयरग्गगओ = गोचरीमें गया हुआ मुणी-साधु अइभूमि-गृहस्थकी मर्यादित भूमिसे अगाड़ी उसकी आज्ञाके विना न गच्छिज्जा = नहीं जावे, (किन्तु) कुलस्स गृहस्थ के घरकी भूमि = मर्यादित भूमिको जाणित्ता जानकर मियं भूमि जिस घर में जहांतक जानेकी मर्यादा हो वहांतक ही परकमे = जावे ॥२४॥
टीका-'अइभूमि' इत्यादि । गोचराग्रगतो मुनिः अतिभूमि परप्रवेशाय गृह
'असंमत्त' पद से नेत्रविषयक अनुराग का त्याग प्रगट किया है । 'नाइदूरा०' इत्यादि पद से यह सूचित किया है कि साधुको ऐसा आचरण करना चाहिए जिससे किसी को चोर आदि होने का संदेह न हो । 'उप्फुल्लं०' इत्यादि पद से इस संदेह को दूर किया है कि कोई यह न समझे कि-'अरे ! इस बेचारे साधुने ऐसी विभूतो न कभी देखी है और न कभी भोगी है इसलिए यह बड़ा दीन है ॥ २३॥
'अइभूमिः' इत्यादि । जिस घर में भूमि की जितनी मर्यादा हो उसे उल्लंघन करके
असंसतं० श-४थी नेत्रविषय४ मनुरागनी त्यास घट ४ छ. नाइदूरा० त्याहथी એમ સૂચિત કરવામાં આવ્યું છે કે સાધુએ એવું આચરણ કરવું જોઈએ કે જેથી કોઈને यार माडिवाना सहन ५3. उप्फुल्लं. त्याहिश थी से सड६२ ये छ। કઈ એમ ન સમજે કે “અરે ! આ બિચારા સાધુએ એવી વિભૂતિ નથી કેઈવાર જોઈ અને નથી કોઈવાર ભેગવી તેથી એ બહુ જ દીન છે. (૨૩)
अइभूमिः त्याह.२ घरमा भूमिनी रखी माहडाय मेन धान अनि
શ્રી દશવૈકાલિક સૂત્રઃ ૧