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अध्ययन ५ उ. २ गा० ७-८ गमने पृथिवीकायादि यतना
३०३ अपकायादियतनामाह-'न चरेज्ज' इत्यादि ।
१. १ मूलम्-न चरेज्ज वासे वासते , मिहियाए पडतिए ।
___ महावाए व वायंते, तिरिच्छसंपाइमेसु वा ॥८॥ छाया—न चरेद् वर्षे वर्षति, मिहिकायां पतन्त्याम् ।
महावाते वा वाति, तिर्यक्संपातेषु वा ॥८॥ अप्काय आदिकी यतना कहते हैं
सान्वयार्थः-वासे वासंते वर्षा वरसते हुवे मिहियाए पडंतिए-धूअर-कुहरागिरते हुए व-तथा महावाए वायंते महावायु-आँधी-के चलते हुए वा और तिरिच्छसंपाइमेमु-तीड-पतंगादिकोके उडते हुए (साधु) न चरेज्ज-गोचरी न जावे ॥८॥
टीका--वर्षे वर्षति-वृष्टौ सत्याम् , मिहिकायां धूमिकायां पतन्त्यां सत्यां महावाते प्रचण्डपवने वाति-वहति सति, तिर्यसम्पाते तिर्यपतनशीलेषु शलभादिषु सत्सु न चरेत् । 'वासे वासंते' इत्यनेन शीकरपातसमयेऽपि गमननिषेधः तस्यापि दृष्टावन्तर्भावात् अपकायविराधनासाधनत्वाच्च ॥८॥
उक्ता प्रथममहाव्रतविराधनाऽधुना चतुर्थमहाव्रतविराधनाया इतरमहाव्रतविराधना हेतुभूततया तामाह-'न चरेज्ज वेस०' इत्यादि । मूलम्-न चरज्ज वेससामंते, बंभचेरखसाणुए ।
___ बंभयारिस्स दंतस्स, हुज्जा तत्थ विसुत्तिया ॥९॥ छाया-न चरेद वेशसामन्ते, ब्रह्मचर्यवशानुगः ।।
ब्रह्मचारिणो दान्तस्य, भवेत्तत्र विस्रोतसिका ॥९॥ अपकायादिकी यतना कहते हैं-'न चरेज्ज वासे.' इत्यादि ।
जब वर्षा बरस रही हो, कुहरा (धूअर) पड़ रहाहो, आंधी चल रही हो, टिसी आदि उड़ रहे हों, तब साघु गमन न करे । वासे वासंते' इस पद से यह भी ग्रहण कर लेना चाहिए कि जब फुहारे पड़ रहे हो तब भी गमन न करे. क्योकि वह भी वर्षाहीमें अन्तर्गत है और उस समय जाने से अप्काय की विराधना होती है ॥ ८॥
प्रथम महाव्रतकी विराधना बतानेके बाद अब अन्य महाव्रतोंकी विराधना के कारण होने
अ५४ायाहिनी यतना ४ छ-न चरेज्ज वासे० छत्यान्यारे १२साह १२सा २हो, હાય, ધુમસ (ઝાકળ પડી રહ્યો હોય આંધી ચાલી રહી હોય, ટીડ ઉડી રહ્યાં હોય, ત્યારે साधुगमन न रे. वासे वास्ते से शपथी म पण अहए
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यारे વરસાદની ફરફર પડી રહી હોય ત્યારે પણ ગમન ન કરે; કારણ કે તે પણ વરસાદમાં જ આવી જાય છે, અને તે સમયે જવાથી અપકાયની વિરાધના થાય છે. (૮)
શ્રી દશવૈકાલિક સૂત્રઃ ૧