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अध्ययन ४ सू० १९ ( ५ ) वनस्पतिकाययतना
वह बीएसुवा = शालि आदि बीजों पर, बीयपइट्ठेसु वा = बीजों पर रखे हुए शयन आसन आदि पर, रूढेसु वा = अङ्कुरित वनस्पति पर रूढ पइट्ठिएस वा = अङकुरित वनस्पति पर रखे हुए शयन आसन आदि पर, जासु वा = पत्ते आनेकी अवस्थावाली वनस्पति पर, जायपइट्ठेसु वा = पत्ते आनेकी अवस्थावाली वनस्पति पर रखे हुए शयन आसन आदि पर, हरिएसु बा = हरित पर, हरियपइट्ठेसु वा = हरित पर रखे हुए शयन आसन आदि पर, छिन्नेसु वा = कटे हुए हरित पर छिन्नपट्ठेसु वा = कटे हुए हरित पर रखे हुए शयन आसन पर स चित्तसु वा = फिर अन्य सचित्त अण्डा आदि सहित वनस्पति पर, सचित्तकोलपडिनिस्सिएसु वा = घुने हुएसड़े हुए काठ पर न गच्छेज्जा = गमन न करे, न चिट्ठेज्जा = न खड़ा होवे न निसीइज्जा = न बैठे, न तुअट्टिज्जा = न सोवे, अन्नं दुसरेको न गच्छावेज्जा = न चलावे न चिद्वावेज्जा = न खडा करे न निसीयावेज्जा = न बैठावे, न तुअट्टाविज्जा = न सुलावे, गच्छंत वा = सोते हुए अन्न = दूसरेको न समणुजाणेज्जा-भला न जाने । जावज्जीवाए = जीवनपर्यन्त (इसको ) तिविहं = कृत कारित अनुमोदनारूप तीन करणसे (तथा) तिविहेण = तीन प्रकारके मणेण मनसे वायाए = वचनसे कारणं = कायासे नकरेमि न करूंगा न कारवेसि न कराऊँगा, करंतंपि = करते हुए भी अन्नं दूसरेको न समणु जानामि : = भला नहीं समझुंगा भंते ! हे भगवन् ! तस्स उस दण्ड से पडिक मामि= पृथक होता हूँ, निंदामि - आत्मसाक्षीसे निन्दा करता हूँ, गरिहामि = गुरुसाक्षी से ग करता हूँ, अप्पा = दण्ड सेवन करनेवाले आत्माको वोसिरामि = त्यागता हूँ || ५ ||१९|| (५) वनस्पतिकाययतना.
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टीका- बीजेषु = शाल्यादिषु, बीजप्रतिष्ठितेषु - बीजोपरिस्थितेषु शयनाऽऽसनादिषु एवमग्रेऽपि प्रतिष्ठितपदव्याख्या कार्या, रूढेसु-अङ्कुरितेषु जातेषु प्ररोहणानन्तरकालिकावस्थां सम्प्राप्तेषु पत्रितेष्वित्यर्थः, हरितेषु = कीर मयूरपक्षसच्छायतां गतेषु, छिन्नेषु = कुठारादिना संछिद्य पृथक्कृतेषु आर्द्रेषु = सचित्तेषु = अन्येष्वपि सजीवाण्डा
वनस्पतिकायकी यतना कहते हैं - से भिक्खू वा ०' इत्यादि ।
(५) वनस्पतिकाययतना
शालि आदि बीजों पर, बीजों पर रक्खे हुए शय्या आसन आदि पर, अंकुरों पर अंकुरोंपर रक्खे हुए शयन आदि पर, अंकुर अवस्थाके पश्चात् पत्रित अवस्थाको प्राप्त वनस्पतिपर, अथवा उसपर रक्खे हुए शयन आदिपर, कटो हुई वनस्पतिपर, हरी वनस्पतिपर, तथा इनके सिवाय
वनस्पति अयनी यतना डे छे से भिक्स वा० छत्याहि.
(घ) वनस्पतिाययतना.
ડાંગર આદિ બીજે પર, ખીજો પર મૂકેલાં શય્યા આસન આદિ પર, અંકુરે પર, અંકુરે ઉપર મૂકેલાં શયનાદિ પર, અકુર અવસ્થા પછી પત્રિત અવસ્થાને પ્રાપ્ત થએલી વનસ્પતિ પર, અથવા તે પર મૂકેલાં શયનાદિ પર, કાપેલી વનસ્પતિ પર, લીલી વનસ્પતિ
શ્રી દશવૈકાલિક સૂત્ર : ૧