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________________ अध्ययन ४ सू. ४ षड्जीवनिकायस्वरूपम् १५७ जीवा पुढोसत्ता अन्नत्थ सत्थपरिणएणं । आऊ चित्तमंतमक्खाया अणेगजीवा पुढोसत्ता अन्नत्थ सत्थपरिणएणं । तेऊ चित्त मंतमक्खाया अणेगजीवा पुढोसत्ता अन्नत्य सत्थपरिरएणं, वाऊ चित्तमंतमक्खा या अणेगजीवा पुढोसत्ता अन्नत्थ सत्थपरिणएणं | वणस्सई चित्तमंतमक्खाया अणेगजोवा पुढोसत्ता अन्नत्थ सत्थपरिणएणं ॥४॥ छाया तद्यथा-पृथिवीकायिकाः (१), अप्कायिकाः (२), तेजस्कायिकाः (३) वायुकायिकाः (४), वनस्पतिकायिकाः (५), त्रसकायिकाः (६)। पृथिवी चित्तवत्याख्याता, अनेकजीवा, पृथक्सत्त्वा, अन्यत्र शस्त्रपरिणतायाः। आपश्चित्तवत्य आख्याताः, अनेकजीवाः, पृथक्सवाः, अन्यत्र शस्त्रपरिणताभ्यः। तेजश्चित्तवदाख्यातम्, अनेकजीवं, पृथक्सत्त्वमन्यत्र शस्त्रपरिणतात् । वायुश्चित्तवानाख्यातो.ऽनेकजीवः पृथकसत्वोऽन्यत्र शस्त्रपरिणतात, वनस्पतिश्चित्तवानाख्यातोऽनेकजीवः पृथक्सत्त्वोऽन्यत्र शस्त्रपरिणतात् ॥४॥ सान्वयार्थः-तं जहा-वह इस प्रकार है-(१) पुढविकाइया पृथ्वीकायिक, (२) आउकाइया अपकायिक, (३) तेउकाइया तेजस्कायिक, (४) वाउकाइया-वायुकायिक, (५) वणस्सइकाइया वनस्पतिकायिक, (६) तसकाइया-त्रसकायिक ।। अब आचार्य महाराज एक-एककी सचित्तता बतलाते हैंउस षड्जोवनिकायको सूत्रकार दिखाते हैं-'तं जहा' इत्यादि । कठिनता- स्वभाववाली पृथ्वी ही जिनका शरीर हैं उन्हें पृथ्वीकायिक कहते हैं । द्रवत्व -स्वभाववाला जल ही जिनका शरीर हैं उन्हें अप्कायिक कहते हैं । उष्णतास्वभाववाला तेज ही जिनका शरीर हैं उन्हें तेजस्कायिक कहते है । चलन स्वभाववाला वायु ही जिसका शरीर है उन्हें वायुकायिक कहते हैं । लता वृक्ष-गुल्म आदि वनस्पति हो निनका शरीर हैं उन्हें वनस्पतिकायिक कहते हैं। जिन्हें शीत-आतप(गर्मि) आदिद्वारा उत्पन्न हुई पीडासे त्रास होता है ऐसा चलने-फिरने वाला काय जिनका होता हैं उन्हे त्रसकायिक कहते हैं। से प३० पानायने सूत्रा२ वि छ-तं जहा- त्याहि. ૧-કઠિનતા-સ્વભાવવાળી પૃથ્વી જ જેનું શરીર છે તેને પૃથ્વીકાયિક કહે છે. ર-દ્રવ -સ્વભાવવાળું જળ જ જેનું શરીર છે તેને અપૂકાયિક કહે છે. ૩-ઉષ્ણતા-સ્વભાવવાળું તેજ જ જેનું શરીર છે તેને તેજસ્કાયિક કહે છે, ૪ ચલન સ્વભાવવાળો વાયુ જ જેનું શરીર છે તેને વાયુકાયિક કહે છે. પ-લતા વૃક્ષ ગુમ (ગુરુ) આદિ વનસ્પતિ જ જેનું શરીર છે તેને વનસ્પતિકાયિક કહે છે. ૬-જેને ઠંડી ગરમી આદિ દ્વારા ઉત્પન્ન થયેલી પીડાથી ત્રાસ થાય છે એવી હરવાફરવાવાળી કાયા જેની હોય છે તેને ત્રસકાયિક કહે છે. હવે અકેકની સચિત્તતા દેખાડે છે. શ્રી દશવૈકાલિક સૂત્રઃ ૧
SR No.006367
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages480
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size27 MB
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