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पत्र आपका मिला श्री श्री १००८ पंजाब केशरी पूज्य श्री काशीरामजी महाराज की सेवा में पढकर सुना दिया। आपकी भेजी हुई उपासकदशाङ्ग सूत्र तथा गृहिधर्मकल्पतरू की एक प्रति भी प्राप्त हुई हैं, ऐसे ग्रन्धरत्नों के प्रकाशित करवाने की बड़ी आवश्यकता है। यह पुरुषार्थसराहनीय है ।
आपका शशिभूषणशास्त्री अध्यापक जैन हाई स्कूल
अम्बाला शहर. शान्त स्वभावी वैराग्य मूर्ति तत्व वारिधि, धैर्यवान श्री जैनाचार्य पूज्यवर श्री श्री १००८ श्री खूबचन्दजी महाराज साहेबने सूत्र श्री उपासक दशाङ्गजी को देखा । आपने फरमाया कि पण्डित मुनी घासीलालजी महाराज ने उपासक दशाङ्ग सूत्रको टीका लिखने में बडा ही परिश्रम किया है । इस समय इस प्रकार प्रत्येक सूत्रों की संशोधक पूर्वक सरल टीका और शुद्ध हिन्दी अनुवाद होनेसे भगवान निर्ग्रन्थों के प्रवचनो के अपूर्व रस का लाभ मिल सकता है.
बालाचोर से भारतरत्न शतावधानी पंडित मुनि श्री १००८ श्री रतनचन्दजी फरमाते हैं कि :
उत्तरोत्तर जोतां मूल सूत्रनी संस्कृतटीकाओ रचवामां टीकाकारे स्तुत्य प्रयास कर्यों छे, जे स्थानकवासी समाज माटे मगरूरी लेवा जेवू छे, वली करांचीना श्री संघ सारा कागलमां अने सारा टाइपमा पुस्तक छपावी प्रगट कयूछे जे एक प्रकारनी साहित्य सेवा बजावी छे.
बम्बई शहेर में विराजमान कवि मुनि श्री नानचन्द जी महाराजने फरमाया है कि पुस्तक सुन्दर है प्रयास अच्छा है।
खीचन से स्थविर क्रिया पात्र मुनि श्री रतनचन्दजी महाराज और पंडितरत्न मुनि सम्रथमलजी महाराज श्री फरमाते हैं कि-विद्वान महात्मा पुरुषोंका प्रयत्न सराहनीय है क्या जैनागम श्रीमद् उपासक दशाङ्ग सूत्र की टीका, एवं उसकी सरल सुबोधनो शुद्ध हिन्दी भाषा बडी ही सुन्दरता से लिखी है।
श्री वीतरागाय नमः॥ श्री श्री श्री १००८ जैनधर्म दिवाकर जैनागमरत्नाकर श्रीमज्जैनाचार्य श्री पूज्य
શ્રી દશવૈકાલિક સૂત્ર: ૧