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वयोवृद्ध श्री १००८ श्री ताराचंदजी महाराज पण्डित श्री किशनलालजी महाराज आदि ठाण १४ सुख शांती में विराजमान हैं आपके वहां विराजित जैनशास्त्राचार्य पूज्यपाद श्री १००८ श्रीघासीलाल जी महाराज आदि ठाणा नव से हमारी बन्दना अर्ज कर सुख शांति पूछे आपने उपासकदशांग सूत्र के विषय में यहां विराजित मुनिवरों की सम्मती मंगाई उसके विषय में वक्ता श्रीगोभागमलजी महाराज ने फरमाया है कि वर्तमान में स्थानकवासी समाज में अनेकानेक विद्वान मुनि महाराज मौजूद हैं। मगर जैनशास्त्र की वृति रचनेका साहस जैसा घासीलालजी महाराज ने किया है वैसा अन्य ने किया हो ऐसा नजर नहीं आता दूसरा यह शास्त्र उपयोगी तो यों है संस्कृत प्राकत हिन्दी और गुजराती भाषा होनेसे चारों भाषा वाले एक ही पुस्तक से लाभ उठा सकते हैं जैन समाज में ऐसे विद्वानों का गौरव बढे यही शुभ कामना है आशा है कि स्थानकवासी संघ विद्वानों की कदर करना सीखेगा । योग्य लिखें शेष शुभ
भवदीय जमनलाल रामलाल कीमती
आगरा से:
श्रीजैनदिवाकर प्रसिद्धवक्ता जगद्ववल्लभ मुनि श्रीचोथमलजी महाराज व पंडित रत्न मुव्याख्यानी गणीजी श्री प्यारचन्द जी महाराज ने इस पुस्तक को अतीव पसन्द की है। श्रीमान् न्यायतीर्थ पण्डित
माधवलालजी खोचन से लिखते हैं किःउन पंडितरत्न महाभाग्यवंत पुरुषों के सामने उनकी अगाधतत्त्वगवेषणा के विषय में में नगण्य क्या सम्मति दे सकता हूँ।
परन्तु:---
मेरे दो मित्रों ने जिन्होंने इसको पढा है बहुत सराहना की है वास्तव में ऐसे उत्तम व सबके समझाने योग्य ग्रन्थों की बहुत आवश्यकता है और इस समाज का तो ऐसा ग्रन्थ ही गौरव बढा सकते हैं-ये दोनों ग्रन्थ वास्तव में अनुपम हैं ऐसे ग्रन्थरत्नोंके सुप्रकाशसे यह समाज अमावास्या के घोर अन्धकार में दीपावली का अनुभव करती हुई महावीर के अमूल्य वचनोंका पान करती हुई अपनीउन्नति में अग्रसर होती रहेगी।
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ता. २९-११-३६ अम्बाला (पंजाब
શ્રી દશવૈકાલિક સૂત્રઃ ૧