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________________ १४ अध्ययन ३ गा० ३ (५२) अनाचोर्णानि गन्धमाल्ये-गन्धः चन्दन-केतकादिसौरभम् (७) माल्यं-पुष्पादिमाला, तयोरितरेतरयोग इति गन्ध-माल्ये (८), तथा वीजनं ग्रीष्मादिऋतौ तालवृन्तादिना वातादिसञ्चालनम् (९), अत्राऽऽरम्भादयो दोषा जायन्त इति स्वयमवगन्तव्यम् । औदेशिकक्रीतकृतयोः स्वरूपं सप्रपञ्चं पञ्चमाध्ययने वक्ष्यते ॥२॥ मूलम्-संनिही गिहिमत्ते य, रायपिंडे किमिच्छए । संवाहणा दंतपहोयणा य, संपुच्छणा देहपलोयणा य॥३॥ (छाया)--संनिधि गृह्यमत्रं च, राजपिण्डः किमिच्छकः । संवाहनं दन्तप्रधावनं च, संप्रच्छनं देहप्रलोकनं च ॥३॥ सान्वयार्थः- - (१०) संनिही-रात्रिमें आहार आदिका संचय (११) गिहिमत्ते-गृहस्थके पात्रमें भोजन करना य और (१२) रायपिंडे-राजाके लिए बनाया हुआ आहार (१३) किमिच्छए-दानशाला या अन्नक्षेत्र आदीका आहार (१४) संवाहणा-शरीरकी मालिश करना (१५) दंतपहोयणा-दांत मांजना य और (१६) संपुच्छणा-गृहस्थसे कुशलप्रश्न पूछना य-और (१७) देहपलोयणा-दण या जलमें मुख आदी देखना ॥३॥ टीका--संनिधीयते सम्यक्तया नितरां स्थाप्यते नरकादिष्वात्माऽनेनेति संनिधिः संभवादत्र घृतादिसञ्चयकरणम् (१०), (७-८) चन्दन केतक अतर आदिकी सुगन्ध तथा फूलमाला आदिका सेवन करना गन्धमाल्य-अनाचार है। (९) ग्रीष्मादि कालमें पंखा चलाना यह व्यजन-अनाचार हैं ? इनसे आरम्भ आदि दोष होते हैं सो स्वयं समझना चाहिये। औद्देशिक और क्रीतकृतका विस्तारपूर्वक विवेचन पांचवें अध्ययनमें किया जायगा ॥१॥ (१०) संनिधि-जिस अनाचारका सेवन करनेसे आत्मा नरकादि कुगतियोंमें गिरती है अर्थात् घृत औषध आदिका रात्रिमें बासी रखना संनिधि-अनाचार है। (6) शिथी (था लागे ) साथी (२माणे शरीरे ) स्नान ४२ से स्नान-बनाया हैपाय छे. (७-८) यन, 31, मत्त२ महिनी सुध तथा ८ भासा माहितु सेवन २७ सध-मादय-मनाया ४वाय छे. (૯) ગ્રીષ્માદિ કાળમાં પંખે ચલાવ એ વ્યજન-અનાચાર છે. એથી આરંભ આદિ દોષ લાગે છે તે પિતેજ સમજવું જોઈએ. ઔદેશિક અને કીતકૃતનું વિસ્તારપૂર્વક વિવેચન પાંચમાં અધ્યયનમાં કરવામાં આવશે. (૨) (૧૦) સંનિધિ-જે અનાચારનું સેવન કરવાથી આત્મા નરકાદિ દુર્ગતિમાં પડે છે, શ્રી દશવૈકાલિક સૂત્રઃ ૧
SR No.006367
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages480
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size27 MB
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