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________________ मुनिहर्षिणी टीका अ. १ ___ इह किल पञ्चमगणधरः श्रीसुधर्मास्वामी जम्बूनामानं स्वशिष्यं पीयूषोपमवचोभिराहादयन् प्रशस्तं संबोधयन्नाह-'सुयं में' इत्यादि । मूलम् –सुयं मे आउसं! तेणं भगवया एवमक्खायं सू०॥१॥ छाया श्रुतं मया आयुष्मन् ! तेन भगवता एवमारव्यातम् ।। टीका-आयुष्मन् ? हे चिरजीविन् ! संयमप्रधानतया प्रशस्तजीविन् ! जम्बूः !। आयुष्मभितिपदं शिष्यस्य जम्बूस्वामिनः कोमलवचनामन्त्रणं विनीतताख्यापनार्थम् । किञ्च-तस्याशेषश्रुतज्ञानोपदेशश्रवणग्रहणधारणरत्नत्रयाऽऽराधन _ तथा-" जैनी "-मिति-जिन भगवान की वाणी को नमस्कार कर मैं (घासीलाल मुनि) दशाश्रुतस्कन्धमत्र की अल्पबुद्धि वालों को बोध कराने वाली मुनिहर्षिणी नामक टीका रचता हूँ ॥४॥ 'इहे' ति-इस सूत्र में पंचम गणधर सुधर्मास्वामी अपने शिष्य जम्बू-स्वामी को अमृततुल्य वचनों से आनन्दित करते हुए उत्तम रीति से सम्बोधित करके कहते हैं-'सुयं मे' इत्यादि । 'आयुष्मन् !' इति-हे चिरजीविन् ! संयमी जीवन वाले हे जम्बू ! । 'आयुष्मन् ' ऐसा सुकोमल शब्द का सम्बोधन, शिष्य जम्बूस्वामी को विनयशीलता दिखानेके लिये दिया गया है । 'आयुष्मन्' सम्बोधन का दूसरा भी तात्पर्य यह है कि :- सम्पूर्ण श्रुतज्ञान के उपदेशका श्रवण करने, ग्रहण करने, धारण करने, ज्ञान, दर्शन, चारित्र का आराधन करने और मोक्षसाधन - योग्यता की प्राप्ति करने के तथा 'जैनी'-मिति-निमयाननी वाणीने नम२४५२ ४शन हुँ (Enlance મુનિ) દશાશ્રુતસ્કલ્પસૂત્રની અલ્પબુદ્ધિવાળાને બંધ કરાવવાવાળી મુનિહર્ષિણ नामनी । स्यु छु. (४) 'इहे' ति मा सूत्रमा यम ९५२ सुधा स्वामी पोताना शिष्य भ्यू સ્વામીને અમૃતતુલ્ય વચનોથી આનંદિત કરતા ઉત્તમ રીતે સંબોધિત કરતાં કહે છે'सुयं मे 'त्यादि. 'आयुष्यन् ' इति- शिवी; संयमी पनवाडे म्भू ! 'आयुष्मन् । मेवा सुमित शम्नु समाधन, शिष्य भूस्वामीनी विनयशास्ता मतावा भाटे मापे छे. 'आयुष्मन् ' शहना समानतुं भाj ५ तात्पर्य એ છે કે–સંપૂર્ણ શ્રુતજ્ઞાનના ઉપદેશનું શ્રવણ કરવું, ગ્રહણ કરવું. ધારણ કરવું, જ્ઞાનદર્શન-ચરિત્રનું આરાધન કરવું, તથા મેક્ષ–સાધન માટે મેગ્યતાની પ્રાપ્તિ કરવી એ શ્રી દશાશ્રુત સ્કન્ધ સૂત્ર
SR No.006365
Book TitleAgam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages511
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashashrutaskandh
File Size25 MB
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