________________
२५८
दशाश्रुतस्कन्धसूत्रे तद्वच्चतुष्कोणा, २ अर्द्धपेटा=अर्द्धपेटाकारा द्विकोणाकारा ३ गोमूत्रिका-गोमू
धारावद्वक्राकारा, ४ पतङ्गचीथिका-पतङ्गस्य-पक्षिणो या वीथि:=मार्गः, सैव वीथिका तद्वद्, अर्थात् पतङ्गो यथा उड्डीय कश्चित्पदेशं व्यवधायोपविशति तथैव एकस्मिन् गृहे भिक्षित्वा अनियमितं क्रमहीनं भिक्षां चरेत्, ५ शम्बूकावर्ता- शम्बूकः शङ्खस्तस्य ये आवर्ताः गोलाकाररेखास्तद्वद् या भिक्षाचर्या सा शम्बूकावा, इयं च द्वेधा-तत्र यस्यां क्षेत्रवहिर्भागाच्छवावर्तगत्याऽटन् क्षेत्रमध्यभागमायाति साऽऽभ्यन्तरशम्बूकावर्ता, यस्यां तु मध्यभागावहिर्याति चरविधि कही गई है, जैसे-"पेडा १, अद्धपेडा २, गोमुत्तिया ३, पयंगवीहिया ४, संबुक्कावट्टा ५, और गंतुंपच्चागया ६"।
__ (१) पेडा-पेटी के समान चार कोने वाली, अर्थात् जिसमें भिक्षा के लिये चतुष्कोण गमन किया जाय । (२) अद्धपेडा-आधी पेटी, अर्थात् जिसमें दो कोण गमन किया जाय । (३) गोमुत्तियागोमूत्रिका के समान बांकी टेढी भिक्षा की जाय । (४) पयंगवीहियापक्षी जिस प्रकार उडकर बीच के प्रदेश को छोडकर बैठता है उसी तरह जिसमें एक घर से भिक्षा लेकर अनियमित और क्रमरहित दूसरे घर पर भिक्षा के लिये जावे।
(५) संबुक्कावट्टा-जिसमें शङ्ख की रेखा के समान गोलाकार से घूमकर भिक्षा की जाय वह शम्बूकावर्त है । यह दो प्रकार की होती है। (१) आभ्यन्तरशम्बुकावर्त (२) बाह्यशम्बूकावर्त । जिसमें क्षेत्र के बहिर्भाग से शंख के आवर्तन जैसी गति से घूमता हुआ क्षेत्र के पेडा (१), अद्धपेडा (२), गोमुत्तिया (३), पयंगवीहिया (४), संबुक्कावट्टा (५) भने गंतुंपच्चागया (६).
(१) पेडा-पेटीना रे या२ भुणापाणी अर्थात् रे मिक्षामा यतुए! गमन ४२वामां आवे. (२) अद्धपेडा-५२धी पेट अर्थात सभा मुहाथी गमन ४२पामा सावे. गोमुत्तिया-गोमूत्रनी पेठे वायु । 25 मिक्षा ४२।य. (४) पयंगवीहिया-पक्षी २ ३ डी यan अटेशन छोडी से छे मेवी शत भां એક ઘેરથી ભિક્ષા લઈને અનિયમિત ને ફેમરહિત બીજે ઘેર ભિક્ષાને માટે જવું.
(५) सबुक्कावट्टा-२मा शमनी २मानी पेठे गाया।२थी शने लिखा ४२५ ते 'शम्बूकावर्त छ. ते मे २नी थाय छ. (१) आभ्यन्तर-शम्बूकावर्त (२) बाह्य-शम्बूकावते. सभा सत्रना मना लागथा शमना मापन
શ્રી દશાશ્રુત સ્કન્ધ સૂત્ર