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________________ मुनिहर्षिणी टीका अ. ६ उपासकप्रतिमाः का नाम प्रतिमे ?-त्याह-प्रतिज्ञाविशेषः प्रतिमेति । सम्प्रति प्रतिमाप्रतिपादकं षष्ठमध्ययनं वर्णयन्नाह-'सुयं में' इत्यादि मूलम--सुयं मे आउसं तेणं भगवया एवमक्खायं-इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं एकारस उवासगपडिमाओ पण्णत्ताओ, कयरा खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं एक्कारस उवासगपडिमाओ पण्णत्ताओ ? इमाओ खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं एकारस उवासगपडिमाओ पण्णत्ताओ, तं जहा ॥ सू० १॥ छाया-श्रुतं मया आयुष्मन् ! तेन भगवतैवमाख्यातम्-इह खलु स्थविरभंगवद्भिरेकादशोपासकमतिमाः प्रज्ञप्ताः, कतराः खलु ताः स्थविरेभगवद्भिरेकादशोपासकप्रतिमाः प्रज्ञप्ताः, ?। इमाः खलु ताः स्थविरभगवद्भिरेकादशोपासकप्रतिमाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-॥ सू० १॥ अवतिसम्यक्दृष्टि तथा देशव्रती । और उपासक शब्द का 'देशविरतिधारक' ही अर्थ होता है । ऐसा ही अर्थ सूत्रकार ने प्रयुक्त किया है । जैसे - उपासक-दशाङ्गसूत्र' के आनन्द आदि गृहस्थों के अधिकार में गृहस्थों के बारह व्रत धारण के बाद कहा है कि-"श्रमणोपासको जातः" श्रमणोपासक हुवा। परन्तु श्रावक ' शब्द का जहा प्रयोग है वहा “ दर्शनश्रावकः" अर्थात् सम्यकदर्शन को धारण करने वाला दर्शनश्रावक होता है । यही दोनों का परस्पर भेद है । अर्थात् श्रमण [साधु] को उपासना करने वाला उपासक कहा जाता है और सम्यग्दर्शन को धारण करने वाला श्रावक कहा जाता है। उपास४ शहना 'देशविरतिधारक' १ अर्थ थाय छे. मेवा०४ अर्थ सूत्रधारे प्रयुत કરેલ છે જેમકે ઉપાસકદશાંગસૂત્રના આનન્દ આદિ ગૃહસ્થોના અધિકારમાં ગૃહસ્થને भाटे मार व्रत धारण ४ा पछी छ "श्रमणोपासको जातः" श्रमपस४ थया. પરન્તુ શ્રાવક શબ્દને જ્યાં પ્રગ છે. ત્યાં “દર્શનશ્રાવક” અર્થાત્ સમ્યક્ દશેનને ધારણ કરવાવાળા ‘દર્શનશ્રાવક થાય છે આમ બેઉ વચ્ચે પરસ્પર ભેદ છે. અર્થાત શ્રમણ (સાધુ) ની ઉપાસના કરવાવાળા ઉપાસક કહેવાય છે અને સમ્યકદર્શનનને ધારણ કરવાવાળાને શ્રાવક કહેવાય છે. શ્રી દશાશ્રુત સ્કન્ધ સૂત્ર
SR No.006365
Book TitleAgam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages511
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashashrutaskandh
File Size25 MB
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