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________________ ॥ श्री ॥ गलुंडिया परिवार का संक्षिप्त जीवनचरित्र स्वातंत्र्य और स्वाभिमान का अमर पुजारी मेवाड, भारतीय गौरवगरिमा को आरावली की गिरिमालाओं को तरह उन्नत और अडोल रखने के लिये सदैव कटिबद्ध हो रहा है । इस वीर भूमि की भव्य गौरवगाथाओं से भारतीय इतिहास का अन्धकारमय युग भी जगमगा उठता है। स्वतन्त्रता और स्वाभिमान के बलिवेदी पर सर्वस्व अर्पण कर देने में इस भूमि की समानता करने वाला संसार भर में कोई दूसरा दृष्टि गोचर नहीं होता । अतः मातृभूमि की स्वतन्त्रता और आत्मगौरव के लिये निरन्तर जूझने वाले मेवाड का भारतीय इतिहास में सर्वोपरि स्थान है। ऐसे गौरवान्वित प्रदेश के इतिहास का जब हम अध्ययन करते हैं तो यह स्पष्ट झलक उठता है कि इन स्वतन्त्रा के पुजारियों के महान् सहयोगी और परामर्श दाता ओसवाल जाति के महापुरुष ही रहे हैं । इस जाति का केवल मेवाड ही नहीं किन्तु समस्त राजस्थान के निर्माण में महत्त्वपूर्ण स्थान रहा हैं। अपने देश और स्वामी के प्रति वफादार रहने वाले जैन वीरों में गलुंडिया परिवार का गौरवान्वित स्थान रहा है। . इस परिवार का इतिहास बहुत पुराना हैं । कहा जाता है कि राठोडवंशीय राजपूत घुड़िया शाखा में राजा चन्द्रसेन ने कन्नोज नामक नगर में भारक श्री पूज्य शांति सूर्यजी के पास सं. ७३५ में जैनधर्म ग्रहण किया था। इससे उस समय घुड़िया से गुगलियाँ गोत्र को स्थापना हुई। इसके बाद राठौडवंशीय लोग मंडोवर आये । इस वंश के शाह कल्लोजी को अपनी वीरता के कारण गढसहित ग्राम गलुंड जागीर में मिला । ये वहीं रहने लगे। उनके वंशज गलुंडियां गढपति के नाम से प्रसिद्ध हुए । यहीं से गलंडियाँ गोत्र की उत्पत्ति हुई । गलंडिया परिवार अपनी वीरता के लिये प्रसिद्ध है। एक समय- का प्रसंग है कि होलकर सिंधियाँ की सेना जो पटेल सेना के नाम से प्रसिद्ध थी वह समय समय पर मेवाड के गावों में छापा मार कर लूट पाट किया करती थी। उसने एक बार वेगू नामक गाँव पर चढाई कर दी । अचानक गांव पर हमला हुआ जानकर ग्राम निवासी घबड़ाकर इधर उधर प्राण बचाकर भागने लगे । गाँववालों को भागते देखकर गलंडिया परिवार का एक व्यक्ति सामने आया
SR No.006364
Book TitleAgam 26 Chhed 03 Vyavahara Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages346
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vyavahara
File Size40 MB
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