________________
तेज कुँवर हैं । चतुर्थ बहन मोहनकुँवरजी इनकी शादी रीयांवाले सेठ घनश्यामदासजी के साथ हुई थी, इनकी स्मृति में भूपाल पुरा उदयपुर में मोहनज्ञानमन्दिर का निर्माण हुआ । जिसमें सब कुटुम्बियों के साहाय्य और सहयोग रहे हैं । यह भवन उपाश्रय और पुस्तकालय के काम में आ रहा है । ५ पाँचवी बहन चन्द्रकुँवर उदयपुर गोपाल भवन में रहती है और धर्मध्यान करती हैं ।
श्री हिम्मतसिंहजी सा० की माता श्री श्रीमती सुन्दरवाई अपने जीवन काल में खूब धर्मध्यान करती थी ८५ पच्चासी वर्ष की अवस्था में कालधर्म को प्राप्त हुई । इन्हीं के धर्मध्यान के सुसंस्कार का यह सुपरिणाम है कि आगे के सन्तति भौतिक सुख साधनों से भरपुर होकर भी जैनधर्म दिवाकर पूज्य श्री घासीलालजी महाराज (जो कि बत्तीस के बत्तीस स्थानकवासी जैन आगम की टीका सम्पन्न करके व्याकरण, साहित्य कोष न्याय आदि समूचे उपयुक्त शब्दजाल के ऊपर अस्सी से ऊँची उमर में भी लेखनी चला रहे हैं) की सेवा से भक्ति के साथ आध्यात्मिक उन्नति सम्मुख हो रही है । श्री हिम्मतसिंह जी का आग्रह है कि
इन गुरुचरणों की सेवा में, बची उमर अब जाय । इनके शुभ आदेश का पालन करने आय ॥१॥