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________________ कि-घोड़ों को बन्धवा दीजिये और हम लोग खुद ही काट कर सस्य सहित घास इनको खिला देते हैं। इस तरह सस्य रौदे नहीं जायेंगे और घोड़ों को सुन्दर चारा मिल जायगा। हजारी जी मान गए और खुश हुए। बाहरी ! अक्लने कैसी युक्ति निकाल ली जिससे मेरी इज्जत की भी कदर हुई। घोड़ों को भी मन चाहा चारा मिल गया और बरबादी भी बची। मैंने तो दानवीरता की परीक्षा की थी, युद्ध वीरता की सनद तो इनके पूर्वज प्राप्त कर ही चुके हैं। मालूम पड़ता है दूसरी परीक्षा में भी ये सर्व प्रथम आवेंगे। क्योंकि नीति बतलाती है यः काकिणीमप्यपथप्रयुक्तां निवारयेन्निष्कसहस्रतुल्याम् । कार्य तु कोटिष्वपि मुक्तहस्तः तं राजसिंहं न जहाति लक्ष्मीः॥ जो चतुर अर्थतन्त्र का पण्डित काकिणी को २० (कौड़ी की काकिणी होती है, चार काकिणी का एक पैसा बनता है) भी अनवसर में लापरवाही से जाते हुए देखकर उसको मूल्यवान मोती समझकर खर्च में नहीं जाने देते हैं और समयोचित कार्य के अवसर पर कोटि के कोटि द्रव्य को मुक्त हस्त से खरचते हैं, ऐसे राजसिंह को लक्ष्मी नहीं छोड़ती है। इतने में सूराजी सामने आगए और आदर सत्कार के साथ बोले-आज का निमन्त्रण दलबल के साथ मेरे घर का स्वीकृत हो। मैं आप से एक बार उपकृत तो हो जाऊँ, बड़े कामों में विघ्न होता ही रहता है कृपा करें । . हजारी जी बोले हाँ हाँ स्वीकृत होगा और अवश्य होगा, लेकिन....सूराजी बोले । लेकिन क्या है तन मन धरा धाम न्योछावर करने के लिये सेवक खड़ा है सिर देकर भी निमन्त्रण स्वीकार करवाने का इरादा बाँधकर आया हैं । हजारी जी बोले-निमन्त्रण की दक्षिणा में अगर तेरी पत्नी तेरे परिवारों के सामने अपने हाथ से तेरा सर काट के दे, और किसी के नेत्रों से अश्रुपात न हो तो....सुराजो ने ऐसा ही किया । इन्हें भोजन के उपरान्त दक्षिणा में सर मिल गया । वाह वाह धन्यवाद कहकर हजारो जी सर को रुमाल में बान्धते हुए बोले- 'बाई-वीर पत्नी तूं है, जरा ठहर जाना, मुझे लौटकर आने देना, और खुद की परीक्षा देने देना, फिर सती होने की व्यवस्था करवाना । .. यों सुराजी के पत्नी को समझा कर जगन हजारी उसी समय लौटते पांवों से भामाशाहू की माता के पास पहुँचे, भामाशाह भी भोजन के लिए इष्ट मित्रों के साथ बैठ रहे
SR No.006363
Book TitleAgam 25 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size30 MB
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