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३ पुष्पितासूत्र मूलधनं दत्वा तान् समर्द्धयन्तीति तथा तत्र गणिमम् = एक - द्वि- त्रि- चतुरादिसंख्याक्रमेण यद्दीयते, यथा - नालिकेर - पूगीफल - कदलीफलादिकम्, धरिमं= तुलासूत्रेणोतोय यदीयते, यथा-व्रीहि-यव- लवण- सितादि, मेयं-शरावलघुभाण्डादिनोत्तोय यद्दीयते, यथा दुग्ध घृत-तैल-प्रभृति, परिच्छेयं च प्रत्यक्षतो निकषादिपरीक्षया यद्दीयते, यथा- मणिमुक्ता-मवाला-भरणादि ।
' सार्थवाहाना' मित्यत्र ' कृत्यानां कर्तरि वे' ति कर्तरि षष्ठी, देकर व्यापार द्वारा धनवान बनाते हैं उन्हें सार्थवाह कहते हैं । एक, दो, तीन, चार आदि संख्याके हिसाब से जिनका लेन देन होता है, उसे ' गणिम' कहते हैं, जैसे - नारियल, सुपारी, केला आदि । तराजू पर तोलकर जिसका लेन देन हो, उसे ' धरिम ' कहते हैं, जैसे- धान, जौ, नमक, शक्कर आदि । सरावा छोटे २ वर्तन आदिसे नाप कर जिसका लेन देन होता है, उसे मेय कहते हैं, जैसे- दूध, घी, तैल आदि । सामने कसौटी आदि पर परीक्षा करके जिसका लेन देन होता है, उसे परिच्छेद्य कहते हैं। जैसे मणि, मोती, मूँगा, गहना आदि ।
वह अङ्गति गाथापति, इन राजा, ईश्वर आदिके द्वारा बहुतसे कार्यों में कार्यको सिद्ध करने के उपायोंमें, कर्तव्यको निश्चित करनेके गुप्त विचारोंमें, बान्धवोंमें,
भूंक आधीने वेपार द्वारा धनवान मनावे छे, तेभने 'साथवाह' आहे छे, खेड, એ, ત્રણ, ચાર આદિ સંખ્યાના હિસાબે જેની લેણ-દેણ થાય છે તેને ગણિમ કહે છે, જેમકે નાળીએર, સાપારી ઇત્યાદિ, ત્રાજવાથી તેાલીને જેની લેણ-દેણુ કરવામાં आवे छे तेने धरिम उहे छे, नेमडे धान्य, ४१, भीहु, सार इत्यादि, पासी પવાલુ જેવાં માપનાં વાસણથી માપીને જેની લેણ-દેણ કરવામાં આવે છે તેને એય કહે છે, જેમકે દૂધ, ઘી, તેલ વગેરે કસાટી આદિથી પરીક્ષા કરીને જેની खेा-द्वेषु ४रवामां आवे छे तेने परिच्छेद्य आहे छे, म भणि, भोती, परवाना, ઘરેણું વગેરે અંગતિ ગાથાપતિને, એ રાજા, ઈશ્વર આદિ તરફથી ઘણાં કાર્યોમાં કાનેિ સિદ્ધ કરવા માટેના ઉપાયામાં, કર્તવ્યને નિશ્ચિત કરવાના ગુપ્ત વિચારોમા
શ્રી નિરયાવલિકા સૂત્ર