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________________ ५० जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे अथाभ्यन्तरतृतीय मंडलस्य चारं प्रष्टुमाह- 'से णिक्यममाणे सूरिए दाच्च सात्यादि, 'से क्सिममाणे सूरिए' अथानन्तरं द्वितीयमण्डलचारसमाप्त्यनन्तरं निष्क्रामन् अपसर्पन् सूर्यः 'दोच्चंसि अहोर तंसि द्वितीये अहोरात्रे प्रस्तुतायनापेक्षया द्वितीयमंडले इत्यर्थः 'अन्तरतच्चं मंडलं उवसंकमिता' अभ्यन्तरं तृतीयमण्डलमुपसंक्रम्य संप्राप्य 'चारं चरई ' चारं गतिं चरति करोति जया णं भंते सूरिए' यदा खलु भदन्त सूर्यः 'अन्मंतरतच्च मंडलं उवसंकमिताचारं चर३' अभ्यन्तस्तृतीयमंडलमुपसंक्रम्य चारं चरति ' तयाणं एगमेगेण मुतेणं केवइयं खेत्तं गच्छइ' तदा तस्मिन् तृतीयमंडल संक्रमणकाले खलु एकैकेन मुहून कियत् प्रमाणकं क्षेत्रं गच्छतीति प्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमे' त्यादि 'गोयमा' हे गौतम ! 'पंच पंचजोयणसहस्सा ई' पंच पंच योजनसहस्राणि 'दोणि य बावणे जोयणसए' इकसठ होता है। उससे शेष राशि का भाग करने पर साठिया सतावन भाग प्राप्त होता है साठ भाग के उन्नीसवा भाग सत्क सतरवां भाग १७ ६१ अब अभ्यन्तर के तीसरे मंडल की गति को पूछने के हेतुसे कहते हैं'से क्खिममणे सूरिए' दूसरे मंडलकी गति समाप्त होने पर गमन करताहुआ सूर्य 'दोच्चंसि अहोर तंसि' दूसरे अहोरात्र में अर्थात् प्रस्तुत अयनकी अपेक्षा से दूसरे मंडल में 'अध्यंतरं तच्चं मंडल उवसंकमिता अभ्यन्तर के तीसरे मंडल में जाकर के 'चारं चरइ' गति करता है, 'जयाणंभंते! सूरिए' हे भदन्त जब सूर्य 'अभंतरतच्चं मंडल उवसंकमित चारं चरई' अभ्यन्तर के तीसरे मंडल में जाकर गति करता है 'तयाणं एगमेगेण मुहुतेणं केवइयं खेतं गच्छइ' उस समय अर्थात् तीसरे मंडल के संक्रमण काल में एक एक मुहूर्त में कितने प्रमाण का क्षेत्र में गमन करता है ? इसप्रश्न के उत्तर में प्रभु श्री कहते हैं- 'गोयमा ! | हे गौतम! पंच पंच जोयणसहस्साई' पांच पांच हजार योजन ५७ ૬૦ રાશીને સાઇઠથી અપવના કરવાથી એકસઠ થાય છે. તેનાથી શેષ રાશીનેા ભાગ કરવાથી સાઠિયા પૂછુ ભાગ મળી જાય છે. સાઇઠ ભાગના એગણીસમેા ભાગ સત્ય એક સાઠિયા ભાગ પ हवेल्यन्तरना त्रीक मंडजनी जति पूछवाना हेतुथी ४ड़े छे-' से मि सूरिए' मील भडजनी गति समाप्त थ गया पछी गमन करतो सूर्य' 'दोच्चंसि अहोरत्त 'सि' मील अहोरात्रमां अर्थात् प्रस्तुत भयननी अपेक्षाथी जीन मंडणभां 'अन्भंतर' तच्चं मंडलं उवसंकमिता' आल्यन्तरना श्री भडजमां ने 'चार' चरइ' गति उरे छे. 'जयाणं भंते! सूरिए' हे भगवन् ! न्यारे सूर्य' 'अभंतरतच्चं मंडल उवसंकमिता चार चरई' अल्यन्तरना श्री मंडजमां ने गति उरै छे. 'तया णं एगमेगेण मुहुतेणं केवइयं खेत ं गच्छइ' मे समये अर्थात् त्री मंडजना सभा अणमा डेंटला प्रभाणुवाणा क्षेत्रमां गमन करे छे ? या प्रश्नना उत्तरभां अलु हे गौतम! 'पंच पंच जोयणसहरसाई' पांय पांय इन्नर योनन જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર ! ये भुहूर्त भां हे छे - 'गोयमा !' 'दोण्णिय बावणे
SR No.006356
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages567
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size35 MB
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