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________________ प्रकाशिका टीका-सप्तमवक्षस्कारः सू० ३२ चन्द्रसूर्यादीनामल्पबहुत्वनिरूपणम् ५२३ सम्प्रति-जधन्योत्कर्षाभ्यां जम्बूद्वीपे चक्रवर्तिनः संख्या ज्ञातुं प्रश्नयनाह-'जंबुद्दीवेणं भंते' इत्यादि, 'जंबुद्दीवेणं भंते ! दीवे' जम्बूद्वीपे खलु भदन्त ! द्वीपे सर्वद्वीपमध्य जम्बूद्वीपे इत्यर्थः 'केवइया' कियन्त:-कियत्संख्यकाः 'जहण्णपए वा उक्कोसपए वा' जघन्यपदेसर्वस्तोके स्थाने उत्कृष्टे पदे-सर्वोत्कृष्टस्थाने विचार्यमाणे 'चकवट्टी सबग्गेणं पत्रत्ता' चक्रवर्तिनः सर्वाग्रेण-सर्वसङ्कलनया प्रज्ञप्ता:-कथिता इतिप्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'जहाणपए चत्तारि' जघन्यपदे चखार चक्रवत्तिनः कथिता, तथाहिनम्बूद्वीपस्य पूर्वविदेहक्षेत्रे शीतामहोनद्याः दक्षिणोत्तरभागद्वये एकैकस्य चक्रवर्तिनः सद्भावात् एवमपरविदेहक्षेत्रेपि शीतोदकाया महानद्या दक्षिणोत्तरभागे द्वौ चक्रवर्तिनी, तदेवं सर्वसंकलनया जघन्यपदे चत्वार श्चक्रवर्तिनो भवन्ति, 'उकोसपए तीसं चकवट्टी सम्वग्गेण पन्नत्ता' उत्कृष्टपदे त्रिंशचक्रवर्तिनः सर्वाग्रेण प्रज्ञप्ताः, कथमेवं भवति चेदत्रोच्यते-द्वात्रिंश एक २ तीर्थंकर के सद्भाव से २ दो तीर्थकर होते हैं इस प्रकार से ३४ तीर्थंकरों का होना कहा गया है। यह कथन विहरमाण तीर्थंकरो की अपेक्षा से कहा गया जानना चाहिये, जन्म की अपेक्षा से कहा गया नहीं जानना चाहिये, क्यों कि जन्म की अपेक्षा से ३४ तीर्थकर होते नहीं कहे गये हैं-कारण कि ऐसा होना असंभव है। 'जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे केवइया जहण्णपए वा उक्कोसपए वा चक्कवट्टी सव्वग्गेणं पन्नत्ता' हे भदन्त ! इस जंबुद्धीप नामके द्वीप में जघन्य रूप से कितने चक्रवर्ती रहते हैं और उत्कृष्ट रूप से कितने चक्रवर्ती रहते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोयमा ! जहण्णपए चत्तारि' हे गौतम! कम से कम चार रहते हैं-जम्बू द्वीप के पूर्व विदेह क्षेत्र में शीता महानदी के दक्षिण उत्तर भागदय में एक २ चक्रवर्ती का सद्भाव रहता है तथा शीतोदा महानदी के दक्षिण उत्तर भागद्वय में एक २ चक्रवर्ती का सद्भाव रहता है-इस तरह जम्बूद्वीप में कम से कम ४ चार चक्रवर्ती होते कहे गये हैं और उत्कृष्ट पद में तीस चक. હોય છે. આ પ્રમાણે ૩૪ તીર્થકરે થવાનું કહેવામાં આવ્યું છે. આ કથન વિચરમાન તીર્થકરની અપેક્ષાથી કહેવામાં આવ્યાનું જાણવું. જન્મની અપેક્ષાથી કહેવામાં આવ્યું છે. તેમ જાણવાનું નથી કારણ કે જન્મની અપેક્ષાથી ૩૪ તીર્થકર હેવાનું કહેવામાં આવ્યું नथी- ४१२ ३ मे प्रमाणे थयु अशय छे. 'जंबुद्दीवेणं भंते ! दीवे केवइया जहण्णपएवा उक्कोसपए वा चकवट्टी सव्वम्गेणं पन्नत्ता' महन्त ! मूद्वी५ नामनावी५मधन्य રૂપથી કેટલા ચક્રવતી રહે છે અને ઉત્કૃષ્ટ રૂપથી કેટલાં ચક્રવતી રહે છે? આના PARमा प्रभु ४३-'गोयमा! जहण्णपए चत्तारि' गौतम ! सौछामा छ। यार २३ છે જમ્બુદ્વીપના પૂર્વ વિદેહક્ષેત્રમાં શીતા મહાનદીના દક્ષિણ ઉત્તર ભાગ કયમાં ૧-૧ચકવતીને સદ્ભાવ રહે છે તથા શીતાદા મહાનદીના દક્ષિણ ઉત્તર ભાગમાં ૧-૧ચક્રવર્તીને સદૂભાવ રહે છે. આ રીતે જમ્બુદ્વીપમાં ઓછામાં ઓછા ૪ ચકવતી હેવાનું કહેવામાં જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્રા
SR No.006356
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages567
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size35 MB
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