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जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे कथितास्ते तदपेक्षया ऋद्धिविचारणायामुत्क्रमतो महद्धिका ज्ञातव्या इति एकादशं द्वारम् ॥
सम्प्रति द्वादशं द्वारप्रश्नमाह-'जंबुद्दीवेणं' इत्यादि, 'जंबुद्दीवेणं भंते ! दीवे' जम्बूद्वीपे खलु भदन्त ! द्वीपे सर्वद्वीपमध्य जम्बूद्वीपे इत्यर्थः 'ताराए य ताराए य' ताराया स्तारायाश्च एकतारापेक्षयाऽपरतारायाः 'केवइयाए अबाहाए अंतरे पन्नत्ते' कियत्या-कियत्प्रमाणकया अबाधया अबाधया अन्तरं प्रज्ञप्तं कथितमिति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'दुविहे वाघाइए य निव्वाधाइए य' द्विविध-द्विप्रकारकम् अन्तरं प्रज्ञप्तम तद्यथा-व्याघातिक निर्व्याधातिकं च, तत्र व्याघातः पर्वतादि देशेभ्यः स्खलनम् तत्रभवं च्याघातिकम्, निर्व्याधातिकं व्याधातिकानिर्गतं स्वाभाविक मित्यर्थः "निवाघाइए जहण्णेणं पंच धणुसयाई उक्कोसेणं दो गाउयाई' तत्र द्वयोरन्तरयोर्मध्ये यत् निर्व्याघातिकं तत् जघन्येन पञ्चधनुः शतानि उत्कर्षेण द्वे गव्यू ते, एतत् जगत्स्वभावादेव ज्ञातव्यम् इति । 'वाधाइए जहण्णेणं दोणि छावट्टे जोयणसए' तयोर्द्वयोरन्तरयो मध्ये यत् व्याघातिक मन्तरं द्वीप में एक तारा से दूसरे तारे का 'केवइयाए अवाहाए अंतरे पन्नते' कितना अन्तर कहा गया है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! दुविहे वाघाइए य निवाधाइए य' हे गौतम ! अन्तर व्याधातिक ओर नियाधितक के भेद से दो प्रकार का होता है जिस अन्तर में-बीच में पर्वतादिकों का पड जाना होता है वह व्याघातिक अन्तर और जो अन्तर इस व्याघात से रहित होता है अर्थात स्वा. भाविक होता है वह निर्व्याघातिक अन्तर है 'निवाघाइए जहण्णणं पंचधणुस. याई उक्कोसेणं दो गाउयाई' इनमें जो व्याघात विना का अन्तर है वह कम से कम पांचसो धनुष का है और अधिक से अधिक दो गव्यूत का है यह जगत्स्वभाव से ही हुआ जानना चाहिये 'वाधाइए जहण्णेणं दोण्णि, छावट्टे जोयणसए' व्याधातिक जो अन्तर है वह दो सौ ६६ छियासठ योजन का है यह जघन्य की अपेक्षा अन्तर कहा गया है और निषधकूट की अपेक्षा लेकर कहा गया है ताराथी मीon an 'केवइयाए अबाहाए अंतरे पन्नत्ते'
नु मन्तर समाधाथी पामi भाज्यु ? उत्तरमा प्रभु हे छ-'गोयमा ! दुविहे वावाइए य निवाघाइए य' 8 गौतम ! અન્તર વાઘાતિક અને નિર્વાઘાતિના ભેદથી બે પ્રકારનું કહેવામાં આવેલ છે. જે અન્તરમાંવચમાં પર્વતાદિકનું પડી જવાનું થાય છે તે વ્યાઘાતિક અન્તર અને જે અન્તર આ व्याधातथी हिताय छ-मर्थात स्वाभावि डाय छ ते निव्याधाति: मन्तर छ 'निवाधाइए जहण्णेणं पंच धणुसयाई उक्कोसेणं दो गाउयाई' मामा रे व्याधात भन्तर છે તે ઓછામાં ઓછું પાંચસે ધનુષ્યનું છે અને વધુમાં વધુ બે ગભૂતનું છે. આ मगरलायी ॥ ययेवु नये. 'वाघाइए जहण्णेणं दोण्णि छावद्वे जोयणसए' વ્યાઘાતિક જે અન્તર છે તે ૨૬૬ બસ છાંસઠ જનનું છે આ જઘન્યની અપેક્ષા અન્તર કહેવામાં આવ્યું છે અને નિષધકૂટની અપેક્ષા લઈને કહેવામાં આવ્યું છે આનું તાત્પર્ય
જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર