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________________ ४८२ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे तेन स्वरेण मनोहराणाम् 'अल्लीणप्पमाणजुत्तवट्टियसुजाय लक्खणप सत्थरम णिज्जवालगत - परिपुंछणाणं' आलीन प्रमाणयुक्तलक्षणशप्रस्तरमणीयवालमात्र परिपुंछनानाम्, तत्र आलीनं सुश्लिष्टं निर्भर केशत्वात् प्रमाणयुक्तं चरणावधि लम्बमानत्वाद् वर्त्तितं वर्तुलं सुजातं लक्षणप्रश स्तरमणीयमनोहरा वाला यस्य तत् एवंविधं मात्र परिपुच्छनं- पुच्छं येषां ते तथा तेषाम्, पशवोहि प्रायः पुच्छेनैवशरीरं प्रमार्जयन्तीतिलोके दृश्यते एव 'उवचिय पडिपुण्णकुम्म चलणलहु विकमाणं 'उवचितपरिपूर्णकूर्म चलन लघुविक्रमाणाम्, तत्र उपचिताः मांसलाः परिपूर्णाः पूर्णां वयवा तथा कूर्मवदुन्नता वरणास्तै लघुलाघवोपेतः शीघ्रतरः विक्रमः पादविक्षेपो येषां ते तथा daiघुविक्रमाणाम् | 'अंकमयणखाणं' अङ्कमयन खानाम् - अङ्करत्नमयनखानाम् " तवणिज्ज जीहाणं' तपनीयजिहानाम् 'तवणिज्जतालुयाणं' तपनीयतालुकानाम् 'तवणिज्जजोत्तम सुजोइ - भी लटक रही हैं, तथा यह घंटा युगल रजतमयी एक तिर्यग्बद्ध रस्सी पर लटक रहा है उससे जो स्वर निकलता है वह बड़ा ही मनोहर है उससे हाथी भी बडे सुहावने लग रहे है 'अल्लीणप्पमाण जुत्तवट्टिय सुजायलक्खणप सत्थरम णिज्जवालगत्तपरिपुंछणाणं' इनकी पूंछ सुश्लिष्ट है क्यों कि वह केशों से भरी हुई हैं, प्रमाण युक्त है क्यों कि वह पीछे के चरणों तक लटक रही है, वर्तुलगोल हैं, इस पुंछ पर जो बाल है-वे सुजात-जन्म के दोषों से रहित हैं लक्षण संपन्न हैं. प्रशस्त हैं, रमणीय है, और मनोहर हैं, यहाँ 'गात्रपरिच्छनं' यह जो पद दिया गया है वह 'पशुजन प्रायः पूंछ से ही अपने शरीर की सफाई करते हैं इस बातको बताने के लिये दिया गया हैं । 'उवचिय पडिपुण्ण कुम्म चलण लहु विकमाणं' इनके चारों चरण उपचित-मांसल हैं, परिपूर्ण-पूर्ण अवra वाले हैं, तथा कूर्म - कच्छुवे की तरह उन्नत हैं, ऐसे चरणों से इनकी गतिकिया बहुत ही शीघ्रतर होती है 'अंकमय णखाणं' इनके चरणों के नख अंक જે જુદા જુદા મણિએની ખનેલી છે તે પણ લટકી રહી છે તથા આ ઘંટાયુગલ રજતમયી એક તિય પદ્ધ દારડા પર લટકી રહી છે તેમાંથી જે સ્વર નિકળે છે તે ઘણા જ मनोहर छे तेनाथी हाथी पशु घाषा सोहामा लागे छे. 'अल्लीणापमाण जुत्तवट्टिय सुजाय लक्खणपसत्थरमणिज्जवालगत्तपरिपुं छणाणं' सेभनी पूंछडी सुश्लिष्ट छे ते शोध લાયેલી છે, પ્રમાણયુક્ત છે કારણ કે તે પાછળના ચરણેા સુધી લટકી રહી છે, વર્તુળન ગાળ છે. આ પૂંછડી ઉપર જે વાળ છે તે સુજાત-જન્મના દેષાથી રહિત છે લક્ષણ. संपन्न छे, प्रशस्त छे, रमणीय छे भने मनोहर छे, महीं' 'गात्रपरिपुच्छनं' खेवु ने यह व्यायामां आयु छे ते 'पशुजन प्रायः पूंछ' थी ४ पोताना शरीरनी साई ४२ छे थे इर्शाविवा भाटे ४ आयामां मायु' हे 'उवचिय पडिपुण्ण कुम्मचलणलहु विक्कमा ' એમનાં ચારેય પગ ઉચિત-માંસલ છે, પરિપૂર્ણ પૂર્ણ અવયવાવાળા છે તથા ધૂમકાચમાની માફક ઉન્નત છે, આવા ચરણાથી એમની ગતિક્રિયા ઘણી જ ઝડપી બને છે, 'अंकमय णखाणं' भनी यगना नम रत्नभय छे, 'तवणिज्जजीहाणं' सेभनी कम જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006356
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages567
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size35 MB
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