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जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे अर्थतेषामेव षोडशदेवसहस्राणां व्यक्तिमाह-'चंदविमाणस्स गं' इत्यादि, 'वंदविमाणस्स गंपुरस्थिमेणं' चन्द्रविमानस्य खलु पौरस्त्येन पौरस्त्यां बाहां पूर्वपार्श्वसिंहरूपधारिणां देवानां चत्वारि वहन्तीति-'सेयाणं' इत्यादि, 'सेयाणं' श्वेतानां श्वेतवर्णविशिष्टाना मित्यर्थः तथा 'सुभगाणं' सुभगानां सौभाग्यवतां जनप्रियाणा मित्यर्थः 'सुप्पभाणे' सुप्रभाणाम् तत्र सुष्ठु शोभना प्रभा कान्तिः (दीप्तिः) ये ते सुप्रभाः तेषाम् । 'संखतलविमलनिम्मल, दधिधणगोखीर फेनरययणिगरप्पगासाणं' शंखतलविमलनिर्मलदधिधनगोक्षीरफेनरजत निकरप्रकाशानाम् तत्र शङ्खतलं शेषस्य मध्यभागः विमल निर्मलोऽत्यन्तनिर्मलो यो दधिधनः स्त्यानी कृतं दधि, तथा गोक्षीरफेनः रजतनिकरो रूप्यसमुदायः एतेषामिव. प्रकाशस्तेजः प्रसरो येषां ते तथाभूता स्तेषाम् । तथा-'थिरलट्ठपउहपीवरसुसिलिट्ठविसिट्ट तिक्खदाढाविडंबियमुहाणं' स्थिरलष्ट प्रकोष्ठक पीवर सुश्लिष्ट विशिष्टतीक्ष्णदंष्ट्राविडम्बित. मुखानाम् तत्र स्थिरौ दृढौलष्टौ कान्तौ प्रकोष्टको कलात्रिके येषां ते तथावृत्ताः वर्तुलाः पीवराः स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते रहते हैं। अब सूत्रकार यह प्रकट करते हैं कि चन्द्र विमान की पूर्व दिशा में जो चार हजार आभियोगिक जाति के देव हैं वे किन २ विशेषणों वाले हैं-'चंदविमाणस्स णं पुरथिमेणं' चन्द्र विमान की पूर्व दिशा में रही पूर्व बाहा को जो आभियोगिक जाति के देव खेचते हैं-वे सिंहरूपधारी होते हैं और ये चार हजार होते हैं 'सेयाणं' इनका रूप श्वेतवर्ण विशिष्ट होता है। 'सुभगाणं' ये जनप्रिय होते हैं 'सुप्पभाणं' इनकी दीप्ति शोभना होती है, 'संखतल विमल निम्मल दधियण गोखीर फेण रयय णिगरप्पगासाणं' इनका प्रकाश शङ्ख के मध्यभाग के जैसा अत्यन्त निर्मल दही के फेन के जैसा, गाय के क्षीर के फेन जैसा एवं चांदी के समूह जैसा अत्यन्त शुभ होता है 'थिरलट्ठ पउट्ट पीवर सुसिलिट्ठ विसिह तिक्खदाढाविडंबिय मुहाणं' इनके हाथों की कला ईयां स्थिर-दृढ होती हैं लष्ट-कान्त होती हैं तथा इनकी दाढ़े वृत्त-गोल होती સ્થાને લઈ જતાં હોય છે હવે સૂકાર એ પ્રકટ કરે છે કે ચન્દ્રવિમાનની પૂર્વ દિશામાં જે या२ ३०१२ मालियो जतिना व छ तेमा ध्या या विशेष छ-'चंदविमाणरस णं पुरथिमेणं' यन्द्रविमाननी पूर्व दिशामा २ही पूर्व मानो मालियोnx हेप
ये छ-ते। सि३३५४ारी डाय छ भने तेमनी सध्या या२ २नी छे. 'सेयाणं' तमनु ३५ श्वेत विशिष्ट डाय 'सुभगाणं' तया बनप्रिय डाय छे, 'सुप्पभाणं' तेमनी सामनाय छ, 'संखतलविमलनिम्मलदधिघणगोखीरफेणरयणणिगरप्पगासाणं' मेमनी ॥ मना मध्यमान अत्यन्त निम डीना वो, आयना धना २९ रे मने यांही। समूह अत्यन्त शुभ डाय छे. 'थिर लट्ठ पउद्व पीवर सुसिलिटु विसिद्ध तिक्खदाढाविडंबियमुहाणं' मेमना हायना in स्थिRદઢ હોય છે, લષ્ટ-કાન્ત હોય છે તથા એમની દાઢે વૃત -ગળ હોય છે, પીવર-પુષ્ટ
જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર