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जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे ___ भगवानाह-गोयमा' इत्यादि, गोयमा' हे गौतम ! 'उद्धीमुहकलंबुआ पुप्फसंठाणसंठिया अंधकारसंठिई पन्नता' उदीमुखकलम्बुका पुष्पसंस्थानसंस्थिता अन्वकारसंस्थितिः प्रज्ञप्ता, शकटस्य या उद्धी-धूरी तद्वत् ऊर्ध्वमुखकलम्बुकापुष्पं कदम्बपुष्पं तद्वत् संस्थान तेन संस्थानेन संस्थिता अन्धकारस्य तमसः संस्थिति:-संस्थानम्-प्रज्ञप्ता--कथिता, अतएव 'अंतो संकुया बाहिं वित्थडा' अन्तः संकुचिता, बहिः-बाह्यभागे विस्तृता इत्यादि, 'तं चेव जाव' तदेव तापसंस्थित्यधिकारे यत् कथितं तदेव सर्व ज्ञातव्यम्, कियत्पर्यन्तं तापपदार्थ का कोइ आकार हो नहीं होता है ? उत्तर-ऐसा कहना उचित नहीं हैक्योंकि अन्धकार अभाव रूप पदार्थ नहीं हैं किन्तु प्रकाश की तरह वह भी एक भाव रूप ही पदार्थ है "तमालमालावत् नीलं तमश्चलति' तमालमालाकी तरह नील रूपवाला अन्धकार चलता है इस प्रकार को प्रतीति अबाध रूप से समस्त जीवों को उस सम्बन्ध में होती है जैनदर्शनकारोंने अन्धकारको पौद्गलिक पदार्थ माना है अतः अन्धकार में भी पौद्गलिकपदार्थ होने के कारण संस्थान विषयक प्रश्न करने में कोई बाधा नहीं हैं अतः अन्धकार के संस्थान के सम्बन्ध में प्रभु कहते हैं (गोयमा! उद्धीमुहकलंघुआ पुष्फसंठाणसंठिया अंधकार संठिई पण्णत्ता) हे गौतम! अन्धकार का संस्थान जैसा उर्ध्वमुखकरके रखे गये कदम्ब पुष्प का संस्थान होता है वैसा ही कहा गया है अतः यह संस्थान इसका शकट की धुरा के जैसा हो जाता है इस तरह इसका अन्तः संस्थान (संकुया-बाहिं वित्थडा) संकुचित होता है और बाहिर में वह विस्तृत होता है (तंयेव जाव) अत एव ताप संस्थिति के प्रकरण में जैसा पहिले कहा जाचुका है वैसा ही वह सब प्रकरण यहां पर भी 'उसकी दो अनवस्थित बाहा है एक કઈ જાતને આકાર હોતું નથી ?
ઉત્તર-આમ કહેવું બરાબર નથી કેમકે અધિકાર અભાવરૂપ પદાર્થ નથી. પરંતુ सनी मते ५५५ मे लाप३५ पहा छ. 'तमालमालावत् नीलं तमश्चलति' तमाમાલાની જેમ નીલરૂપ યુક્ત અંધકાર ચાલે છે. આ પ્રમાણેની પ્રતીતિ અબાધારૂપે સમસ્ત અને આ સંબંધમાં થાય છે. જૈનદર્શનકારોએ અંધકારને પદુગલિક ગ છે. એથી અંધકારમાં પણ પગલિક પદાર્થ હોવાને લીધે સંસ્થાન વિષયક પ્રશ્ન કરવામાં કઈ પણ जतनी माया नथी. मेथी मारना संस्थानना समयमा प्रभु हे छे 'गोयमा ! उद्धीमुहकलंबा पुप्फसंठाणसंठिया अंधकारसठिई पण्णत्ता' गौतम! मानुसयान २५ ઉર્વ મુખના રૂપમાં મૂકવામાં આવેલ કદંબ પુનું સંસ્થાન હોય છે, તેવું જ કહેવામાં આવેલું છે. એથી આ સંસ્થાન આનું શકટ ધરાવત્ થઈ જાય છે. આ પ્રમાણે આનું मन्तः सयान 'सकुया-बाहि वित्थडा' सथित डाय छ भने महाभा ते विस्तृत हाय छ. 'तं येव जाव' मेटसा भाटे ५ स्थितिना प्र.२९मा २ प्रमाणे ५i पाभी
જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર