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________________ प्रकाशिका टीका-चतुर्थवक्षस्कारः सू०८ हैमवतक्षेत्रस्वरूपनिरूपणम् गौतमस्य प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा ! हे गौतम ! 'महाहिमवंतस्स बासहरपब्वयस्स दक्खिणेणं चुल्लहिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं पुरथिमलवणसमुदस्स पचत्थिमेणं पच्चत्थिमलवणसमुदस्स पुरस्थिमेणं एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे हेमवए णामं वासे पण्णत्ते' महाहिमवतो वर्षधरपर्वतस्य दक्षिणेन-दक्षिणस्यां दिशि क्षुद्रहिमवतो वर्षधरपर्वतस्य उत्तरस्यां दिशि, पौरस्त्यलवणसमुद्रस्य पश्चिमायाम, पश्चिमलवणसमुद्रस्य पूर्वस्याम् , अत्र खलु जम्बूद्वीपे द्वीपे हैमवतं नाम वर्ष प्रज्ञप्तम्-कथितम् , 'पाईणपडीणायए' इदश्च प्राचीन-प्रतीचीनायतमदीर्घम् , 'उदीण दाहिण विच्छिण्णे' उदीचीन दक्षिणविस्तीर्णम् , 'पलियंकसंठाणसंठिए' पल्यङ्कसंस्थानसंस्थितम्-पर्यङ्काकारसंस्थितम् आयतचतुरस्रत्वात् , 'दुहा' इत्यादि, 'दुहालवणसमुदं पुढे पुरथिमिल्लाए कोडीए पुरथिमिल्लं लवणसमुदं पुढे, पच्चस्थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं लवणसमुदं पुढे' द्विधा लवणसमुद्रं स्पृष्टम् , पौरस्त्यया कोटया पौरस्त्यं जंबुद्दीवे दीवे हेमवए णामं वासे पण्णत्ते) हे भदन्त ! क्षुद्रहिमवान् वर्षधर पर्वत से विभक्त हैमवत क्षेत्र इस जम्बूद्रीपनामके द्वीप में कहां पर कहा गया है-१ इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-(गोयमा ! महाहिमवंतस्स वासहरपब्वयस्स दक्खिणेणं चुल्लहिमवंतस्स वासहरपव्ययस्स उत्तरेणं पुरथिमलवणसमुदस्स पच्चस्थिमेणं पच्चत्थिमलवणसमुदस्स पुरथिमेणं एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे हेमवएणामं वासे पण्णत्त) हे गौतम ! महाहिमवान् वर्षधर पर्वत की दक्षिण दिशा में क्षुद्रहिमवान् पर्वत की उत्तरदिशा में, पूर्वदिग्वर्ती लवणसमुद्र की पश्चिमदिशा में एवं पश्चिमदिग्वर्ती लवणसमुद्र की पूर्वदिशा में जम्बूद्वीप नामके द्वीप में हैमवतक्षेत्र कहा गया है (पाईणपडीणायए) यह हैमवत क्षेत्र पूर्व से पश्चिम तक लम्बा है (उदीणदाहिण विच्छिण्णे) तथा उत्तर से दक्षिण तक चौडा है (पलिअंकसंठाणसंठिए दुहा लवणसमुदं पुट्ठा पुरथिमिल्लाए कोडीए पुरत्थिमिल्लं लवणसमुदं पुढे पच्चस्थिमिल्लाए कोडीए पच्चस्थिमिल्लं लवणसमुदं पुट्ठा) दीवे हेमवए णामं वासे पण्णत्ते' , RE! क्षुद्र भिवान् ५२ ५५ थी पिलत हैવાત ક્ષેત્ર આ જ બૂઢીપ નામક દ્વીપમાં કયા સ્થળે આવેલ છે? એના જવાબમાં પ્રભુ हे छे. 'गोयमा! महाहिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स दक्खिणेणं चुल्लहिमवंतस्स वासहर. पव्वयस्स उत्तरेणं पुरथिमलवणसमुदस्स पच्चत्थिमेणं पच्चत्थिमलवणसमुदस्स पुरस्थिमेणं एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे हेमवए णामं वासे पण्णत्ते' हे गौतम ! मह हिमपान १षधर પર્વની દક્ષિણ દિશામાં ક્ષુદ્ર હિંમવાન પર્વતની ઉત્તર દિશામાં પૂર્વ દિગ્વતી લવણ સમુद्रनी पूर्ण शामi भूद्वी५ नम दीपमा हभपत क्षेत्र मा छे. 'पाईण पडीणायर' से हैमवत क्षेत्र पूर्वथा पश्चिम सुधा सामु छ. 'उदीणदाहिणविच्छिण्णे' तम उत्तरथी दक्षिण सुधी पाणु छ. 'पलिअंकसंठाणसंठिए दुहा लवणसमुदं पुट्ठा पुरथिमिल्लाए कोडीए पुरथिमिल्लं लवणसमुदं पुढे पच्चस्थिमिल्लाए कोडीए पच्चथिमिल्लं लवणसमुई જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006355
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages806
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size51 MB
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