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________________ ७५२ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे खलु लवणसमुद्रः ते प्रदेशाः जम्बूद्वीपस्य लवणसमुद्रस्पृष्टा अपि जम्बूद्वीप एव जम्बूद्वीपसीमावर्त्तित्वात् न खलु ते लवणसमुद्रः जम्बूद्वीपसीमानमतिक्रम्य लवणसमुद्रसीमानमप्राप्तत्वात् किन्तु जम्बूद्वीपसीमागता एव ते प्रदेशाः लवणसमुद्र स्पृष्टास्तेन तटस्थतया संस्पर्शभवनात् तर्जन्या संस्पृष्टा ज्येष्टाङ्गुलिखि स्वव्यपदेशं लभते इति । ' एवं लवणसमुइस विपरसा जंबुद्दीवे पुट्ठा भाणियव्वा इति || ' एवं लवणसमुद्रस्यापि प्रदेशा जम्बूद्वीपे स्पृष्टा भणितव्या इति, आलापप्रकारस्तु एवम् - हे भदन्त ! लवणसमुद्रस्य चरमप्रदेशाः जम्बूद्वीपं स्पृष्टा नवेति प्रश्नः, भगवानाह - हन्त, गौतम ! ये लवणसमुद्रस्य चरम प्रदेशास्ते जम्बूद्वीपं स्पृष्टवन्त एव, हे भदन्त ! लवणसमुद्रस्य चरमप्रदेशाः जम्बूद्वीपं स्पृष्टास्ते किं लवण समुद्रव्यपदेशभाजः उत जम्बूद्वीपस्पृष्टत्वाद् जम्बूद्वीपव्यपदेशभाज इति पुनः प्रश्नः, भगवानाह - हे गौतम ! लवण समुद्रस्य ते चरमप्रदेशा लवणसमुद्रव्यपदेशभाज एव वेणं दीवे णो खलु लवणसमुद्दे' हे गौतम ! वे जम्बूद्वीप के चरमप्रदेश जो कि लवणसमुद्र को छुए हुए हैं वे जम्बूद्वीप के ही कहलावे गे लवणसमुद के नहीं जिस प्रकार तर्जनी संस्पृष्ट ज्येष्ठाङ्गुली ज्येष्ठाङ्गुली ही कहलावेगी- तर्जनी नहीं कहलावेगी । वे चरमप्रदेश ऐसे तो हैं नही जो जम्बूद्वीप की सीमा को उल्लंघन करके लवण समुद्र की सीमा में प्रविष्ट हुए हो किन्तु जम्बूद्वीप की सीमा में रहते हुए ही वे वहां स्पृष्ट हुए हैं । अतः वे उसी के ही व्यपदेश्य हैं । अन्य के नहीं' । ' एवं लवणसमुद्दस्स वि पएसा जंबुद्दीवे पुट्ठा भाणियत्वा' इसी तरह से लवणसमुद्र के चरमप्रदेश जो कि जम्बूद्वीप को छूते हैं कहलेना चाहिये यहां आलाप प्रकार इस प्रकार से है - हे भदन्त । लवण समुद्र के चरमप्रदेश जम्बूद्रीप को छूते हैं या नही ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-हां गौतम ! छूते हैं तो फिर वे लवणसमुद्र के कहलावेंगे ? या जम्बूद्वीप के कहलावेंगे ? जम्बूद्वीप के नहीं क्यों कि वे उसकी सीमा में ही रहे हुए हैं और वहीं से वे उसे हे छे - 'गोयमा ! जंबुद्दीवेणं दीवे णो खलु लवणसमुद्दे' हे गौतम! ते मंजूदीपना शरभप्रदेशो કે જેઓ લવણસમુદ્રને સ્પશી રહ્યા છે, તે લવણસમુદ્રના નહિ પરંતુ જમૂદ્રીપના જ કહેવાશે. જે પ્રમાણે તર્જની સ ́પૃષ્ટ જ્યેષ્ઠાંગુલી ચેષ્ઠાંગુલી જ કહેવાશે, તની નહિ. તે ચરમપ્રદેશે એના તેા છે જ નહિ કે જેએ જ ખૂદ્દીપની સીમાને એળ‘ગીને લવણસમુદ્રની સીમામાં પ્રવિષ્ટ થયેલા હાય પર`તુ તે પ્રદેશેા જ બુદ્વીપની સીમામાં રહીને ત્યાં પૃષ્ટ थयेला छे. मेथी तेथे । तेना ४ व्ययद्देश्य छे जीनना नहि. 'एवं लवणसमुद्दस्स विपएसा जंबुद्दीवे पुट्ठा भाणियव्वा' या प्रभारी सवसमुद्रना शरभप्रदेश है मेथेो मंजूदीयने स्पर्शे છે તે પણ આ પ્રમાણે જ સમજી લેવા જોઈએ. અહી આલાપ પ્રકાર આ પ્રમાણે છેહે ભદંત ! લવણુસમુદ્રના ચરમપ્રદેશે જ ખૂદ્રીપને સ્પર્શે છે કે નહિ ? જવામમાં પ્રભુ કહે —હાં ! તે જ્યારે તેઓ સ્પર્શી કરે તે પછી તે લવણસમુદ્રના કહેવાશે ? અથવા જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006355
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages806
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size51 MB
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