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________________ प्रकाशिका टीका-पञ्चमवक्षस्कारः सू. १० अच्युतेन्द्रकृततीर्थकराभिषेकादिनिरूपणम् ७०५ तत्र ततम् वीणादिकम् १ विततम् पटहादिकम् २ घनम् तालप्रभृतिकम् ३ शुषिरं वंशादिकम् ४ 'अप्पेगइया चउन्विहं गेअं गायति' अप्येककाः देवाश्चतुर्विधं गेयं गायन्ति 'तं जहा' तद्यथा 'उक्खित्तं १ पायत्तं २ मंदाइयं ३ रोइआवसाणं' ४ उत्क्षिप्तम् १ पादात्तम् २ मन्दायम् ३ रोचितावसानम्' ४ तत्र उक्षिप्तम् प्रथमतः समारभ्यमाणम् १ पादात्तम् पादबद्धं वृत्तादि चतुर्भागरूपपादबद्धमिति भावः २ मन्दायम् मध्यभागे मूर्च्छनादि गुणोपेततया मन्दं मन्द घोलनात्मकम् ३, रोचितावसानम् रोचितम् , यथोचितलक्षणोपेततया भावित सत्यापितमिति यावत् आवसानं यस्य तत् तथा भूतम् ४ 'अप्पेगइया चउव्विहं गच्चंति' अप्येककाः विततं २, घणं ३, झुसिरं ४' कितनेक देवों ने वहां पर चार प्रकार के-ततवितत धन और शुषिर इन चार प्रकार के वाजों को वजापा-वीणा-दिक वाद्य तत हैं, पटह आदिकवाद्य वितत हैं तालवगैरह का देना घनवाद्य है और वांसुरी आदि का बजाना शुषिरवाद्य है 'अप्पेगइया चउव्विहं गेअं गायति' कितनेक देवों ने वहां पर चार प्रकार का गाना गाया 'तं जहा' गेय के चार प्रकार ये हे-'उक्खित्तं १ पायत्तं २ मंदाइयं ३ रोइयावसाणं ४' उत्क्षिप्त-जो प्रथमतः प्रारम्भ किया जाता है वह 'पायत्त'-वृत्तादि के चतुर्थभागरूप पाद से जो बद्ध होता है वह मन्दाय-मध्यभाग में जो मूर्च्छनादिगुणों से युक्त होने के कारण मन्द घोलनारूप होता है वह, एवं रोचितावसान-जिसका अवसान यथोचित लक्षणों से युक्त होता है वह-इस प्रकार से यह चार प्रकार का गेय है 'अप्पेगइया चविहं पढें पच्चंति' कितनेक देवों ने चार प्रकार का नाटयनर्तन किया 'तं जहा' नाटय के चार प्रकार ये है-'अंचितं दुअं आरभडं, ત્યાં ચાર પ્રકારના-તત વિતત, ઘન, અને શુષિર આ ચાર પ્રકારના વાદ્યો વગાડયાં. વીણા વગેરે વા તત છે, પટડ વગેરે વાદ્યો વિતત છે. તાલ વગેરે આપવું તે ઘનવા કહેવાય છે અને मसरी परे ११॥ शु१२ पाच ४३वाय छ. 'अप्पेगइया चउव्विहं गेअं गायति' मा हे त्यां या२ ५४२ना जाता ani 'तं जहा' ते यार ४२न जी प्रभाएं छे-'उक्खित्तं, पायत्तं, मन्दाईये, रोईआवसाणं' Gram १, पाld २, माय 3, मने ચિતાવસાન ૪, ઉક્ષિપ્ત–જે પ્રથમતઃ પ્રારંભ કરવામાં આવે છે તે, પાયાન્ત–વૃત્તાદિકના ચતુર્થ ભાગ રૂપે પાદથી જે બદ્ધ હોય છે તે, મન્દાય-મધ્ય ભાગમાં જે મૂછનાદિ ગુણેથી યુક્ત હવા બદલ મન્દ ઘોલના રૂપ હોય છે તે, તેમજ રચિતાવસાન–જેનું અવસાન यथायित सक्षथी युक्त हाय छ ते. मा प्रभारी ॥ यार । गेयना छे. 'अप्पेगइया चउव्विहं पढें णच्चंति' डेटा हेवाये या२ ४ा२नु नाट्य-नत यु. 'तं जहा' नाराना ते या२ प्रारी ॥ प्रभारी छ-'अंचित, दुअं, आरभडं, भसोलं' माथित १, જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006355
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages806
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size51 MB
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