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________________ ६७६ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे पञ्चभिरग्रमहिषीभिः सपरिवाराभिः 'तिहिं परिसाहि' त्रिभिः परिषद्भिः 'सत्तहिं अणिएहि सत्तहिं अणिआहिवई हिं' सप्तभिरनीकैः सप्तभिरनीकाधिपतिभिः 'चउहिं चउसद्विहिं आयरक्खसाहस्सीहिं' चतसृभिः, चतुष्षष्टिः, आत्मरक्षकसहस्रः 'अण्णेहि भ' अन्यैश्च इत्यालापकांशेन सम्पूर्णः आलापकस्त्वयं बोध्यः 'चमरचंचारायहाणीवत्थव्वे हि बहहिं असुरकुमारेहि देवेहिय देवीहिअत्ति जहा सके' यथा शक्रस्तथायमपि ज्ञातव्यः ‘णवरं' नवरम् अयं विशेषः 'इमं णाणत्तं' इदम् नानात्वम् भेदः 'दुमो पायत्ताणोपाहिबई' द्रुमः तन्नामकः पदात्यनीकाधिपतिः 'ओघस्सरा घंटा ओघस्वरा तन्नाम्नी घण्टा 'विमाणं पण्णासं जोयणसहस्साई विमानं यानविमानं पश्चाशत् योजनसहस्राणि विस्तारायामम् महिंदज्झओ पंचजोयणसयाई' महेन्द्रध्वजः पञ्चयोजनशतानि उच्चः 'विमाणकारी आभिभोगीओ देवो' विमानकारी विमाननिर्माता आभियोगिको देवो न पुनर्वैमानिकेन्द्राणां पालकादिरिव नियतनामकः 'अवसिढे तंचेव जाव मंदरे समोसरइ पज्जुवासईत्ति' अवशिष्टं तदेव शक्राधिकारोक्तमेववाच्यम् नवरं दक्षिणपश्चिमो वाराहिं' अपने अपने परिवारसहित पांच अग्रमहिषियों से 'तिहिं परिसाहि' तीन परिषदाओं से 'सत्तहिं अणिएहि' सात अनीको सैन्यो से 'सत्तहिं अणी. आहिवइहिं च उहिं चउसट्ठीहिं आयरक्खसाहस्सीहिं' सात अनीकाधिपतियों से चार चौसठ हजार आत्मरक्षा में '२५००० आत्मरक्षक देवों से' तथा 'चमरचंचा रायहाणीवत्थव्वेहिं बहूहिं असुरकुमारेहिं देवेहिअ देवीहि य' चमरचंचा राज. धानी में रहे हुए अनेक असुरकुमार देवों एवं देवियों से युक्त हुआ बैठा था वह भी 'जहा सक्के' सौधर्मेन्द्र की तरह 'जाव मंद्रे समोसरह' यावत् मन्दर पर्वत पर आया ऐसा यहां अन्वय लगालेना चाहिये 'शक के ठाटबाट में और इसके ठाटबाट में 'इमं णाणत्तं' यही भिन्नता है कि 'दुमो पायत्ताणीआहिबई ओघस्सरा घंटा, विमाणं पण्णासं जोयणसयसस्साई महिंदज्झओ पंचजोयणसयाई, विमाणकारी आभिओगिओ देवो अवसिहं तं चेव जाव मंदरे समोसरई' इसकी पैदल चलनेवाली महिसीहिं सपरिवाराहि' पात-पाताना परिवार साथे पाय ममापीमाथी तिहिं' परिसाहि' परिपहासाथी 'सत्तहिं अणिएहि' सात मनी सैन्याथी 'सत्तहि अणीआहिव इहिं चउसट्ठीहि आयरक्खसाहस्सीहि' सात अनधिपतिमाथी, या२ ६४ ६०२ माम२क्षीथी (२५६००० साभ२क्ष वाथी) तथा 'चमरचंचारायहाणी वत्थव्वेहि बहूहि असुरकुमारेहिं देवेहि अ देवीहिय' यामश्य या पानीमा २९ना। मन मसुरभार हे। म वामाथी युत थक मेहत 'जहा सक्के' सौधर्मेन्द्रनाम 'जाव मंदरे समोसरइ' यावत् भन्४२ ५'त ७५२ माव्या. मे मो अन्य नये. A80 818-भाभी मन माना -भाभा 'इमं णाण' मा तावत छ :-'दुमो पायत्ताणीआहिवई ओघस्सरा घण्टा, विमाणं पण्णासं जोयणस यसहस्साई महि दन्झओ पंचजोयणसयाई, विमाणकारी आभियोगिओ देवो अवसिटुं तं चेव जाव मंदरे समोसर જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006355
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages806
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size51 MB
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